scriptCG News: दंतेवाड़ा में 25 करोड़ की लागत से बनेगा कोल्ड स्टोरेज, किसानों को मिलेगा बेहतर दाम | Cold storage will be built in Dantewada at a cost of 25 crores, farmers will get better | Patrika News
रायपुर

CG News: दंतेवाड़ा में 25 करोड़ की लागत से बनेगा कोल्ड स्टोरेज, किसानों को मिलेगा बेहतर दाम

CG News: छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पहली बार एक ऐसा आधुनिक केंद्र बनाया जा रहा है जहां कोल्ड स्टोरेज, खाद्यान्न और वनोपज को खराब होने से बचाने के लिए रेडिएशन जैसी तकनीक का इस्तेमाल होगा।

रायपुरJun 18, 2025 / 02:09 pm

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CG News: दंतेवाड़ा में 25 करोड़ की लागत से बनेगा कोल्ड स्टोरेज, किसानों को मिलेगा बेहतर दाम

दंतेवाड़ा में 25 करोड़ की लागत से बनेगा कोल्ड स्टोरेज (Photo CG Dpr)

CG News: दंतेवाड़ा जिले में खेती और जंगल से मिलने वाली उपज को लंबे समय तक सुरक्षित रखने और किसानों को उनकी मेहनत का पूरा मूल्य दिलाने के लिए एक बड़ी शुरुआत की जा रही है। जिले के पातररास गांव में केन्द्र सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पहली बार एक ऐसा आधुनिक केंद्र बनाया जा रहा है जहां कोल्ड स्टोरेज, खाद्यान्न और वनोपज को खराब होने से बचाने के लिए रेडिएशन जैसी तकनीक का इस्तेमाल होगा। यह कार्य प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के तहत हो रहा है। यह पूरे देश में सरकारी स्तर पर बनने वाली अपनी तरह की पहली सुविधा है। इस परियोजना से बस्तर की तस्वीर बदलेगी।
अब उपज नहीं होगी बर्बाद, बढ़ेगी आमदनी

बस्तर क्षेत्र में इमली, महुआ, जंगली आम, देशी मसाले और मोटे अनाज जैसे बाजरा जैसी उपज होती है। लेकिन सही तरीके से उन्हें संरक्षित रखने और बेचने की सुविधा नहीं होने से हर साल 7 से 20 प्रतिशत उपज खराब हो जाती है। अब जो सुविधा बन रही है, उसमें कोल्ड स्टोरेज, फ्रीजर, रेडिएशन मशीन, और सामान ढोने के लिए बड़े ट्रक होंगे। इससे ये चीजें लम्बे समय तक सुरक्षित रखी जा सकेंगी। उत्पादों का टिकाऊपन बढ़ेगा, बर्बादी रुकेगी और किसानों को ज्यादा दाम मिलेंगे।
क्या-क्या होगा इस सुविधा में

इस परियोजना की लागत करीब 25 करोड़ रुपये है और इसे जिला परियोजना आजीविका कॉलेज सोसायटी चला रही है। यह संस्था खासतौर पर आदिवासी इलाकों में रोजगार बढ़ाने के लिए बनी है। पातररास गांव में बनने वाली इस परियोजना में 1500 मीट्रिक टन की क्षमता वाला कोल्ड स्टोरेज, 1000 मीट्रिक टन का फ्रोजन स्टोरेज, 5 छोटे-छोटे कोल्ड रूम,फलों को जल्दी ठंडा करने के लिए ब्लास्ट फ्रीजर,पकने वाली चीजों के लिए अलग चौंबर,रेडिएशन मशीन जिससे चीजें लंबे समय तक खराब न हों, सामान ले जाने वाले 3 बड़े ट्रक तथा बिजली बचाने के लिए 70 किलोवॉट का सोलर सिस्टम लगेगा।
यह सुविधा हर साल 10 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा उपज को सुरक्षित रखने में मददगार साबित होगी और इसका फायदा दंतेवाड़ा के अलावा बस्तर, बीजापुर, सुकमा, कोंडागांव और नारायणपुर जैसे जिलों के किसानों और वनोपज संग्राहकों को मिलेगा। इस परियोजना के लिए 10 करोड़ रुपये केंद्र सरकार की योजना से तथा 14.98 करोड़ रुपये जिला खनिज निधि से व्यय किये जायेंगे। अब तक इस तरह की प्रोजेक्ट के ज्यादातर काम निजी कंपनियों ने किए हैं, लेकिन पहली बार सरकार खुद ऐसी सुविधा बना रही है, जिससे आदिवासी इलाकों में सरकारी योजनाओं के भरोसे को भी मजबूती मिलेगी।
रोजगार और आमदनी में होगा इजाफा

इस सुविधा से प्रतिवर्ष लगभग 8.5 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है। इसका सीधा फायदा किसानों, वनोपज संग्रहणकर्ताओं और स्थानीय युवाओं को मिलेगा, क्योंकि यहां काम करने के लिए लोगों की जरूरत होगी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ेगा और कई लोगों को अपने गांव में ही रोजगार मिल सकेगा। यह पहल वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित इलाकों में स्थायी रोजगार और शांति की दिशा में भी मददगार साबित होगी।
जल्द ही होगा काम शुरू, तैयार है बाजार

इस सुविधा के लिए जमीन मिल चुकी है और रेडिएशन तकनीक देने वाली संस्था बीआरआईटी के साथ समझौता भी हो चुका है। काम पूरा होने में करीब 24 महीने लगेंगे, यानी 2 साल में सुविधा पूरी तरह शुरू हो जाएगी। प्रशासन ने रायपुर और विशाखापत्तनम जैसे बड़े शहरों में बाज़ार भी तैयार कर लिए हैं, जहां से बस्तर के बने प्रोडक्ट्स को देश-विदेश में भेजा जाएगा। खास बात ये है कि बस्तर के नाम से खास ब्रांड तैयार करने की योजना भी बन रही है, ताकि यहां के उत्पादों की पहचान अलग बने और ज्यादा दाम मिल सके।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का कहना है कि यह सिर्फ एक प्रोजेक्ट नही, बल्कि आदिवासी भाई-बहनों के भविष्य की नींव है। हमारे वनोपज संग्राहकों और किसानों को अब अपने उत्पाद का बेहतर दाम मिलेगा, सामान लंबे समय तक खराब नहीं होगा और वे सीधे बड़े बाजार से जुड़ सकेंगे। यह पूरी व्यवस्था बस्तर के लोगों के लिए, बस्तर के लोगों द्वारा चलाई जाएगी।
यह परियोजना इस बात का प्रमाण है कि अगर नीति, सरकारी संसाधन और लोगों की मेहनत साथ आ जाएं, तो गांव की अर्थव्यवस्था भी चमक सकती है। यह मॉडल अब दूसरे आदिवासी इलाकों के लिए भी एक उदाहरण बनेगा, जहां जनजातीय समुदायों को उनका हक और सम्मान दोनों मिल सके। यह परियोजना बस्तर की तस्वीर को नया आयाम देगी।

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