इन दोनों संरक्षित प्रजातियों को बचाने के लिए वन विभाग प्रयासरत है, लेकिन तस्करी की घटनाएं इन कोशिशों को चुनौती दे रही हैं। कहने को कानून हैं, लेकिन जंगल में आज भी पैंगोलिन का शिकार होता है, मैना के घोंसले उजाड़े जाते हैं। अगर संरक्षण की योजना में सिर्फ सरकारी एजेंसियां नहीं, बल्कि हर नागरिक, हर गांव, और हर स्कूल जुड़े, तभी जैव विविधता का भविष्य सुरक्षित रहेगा।
International Biodiversity Day 2025: पैंगोलिन: खाल की कीमत, जान का सौदा
पैंगोलिन की खाल पारंपरिक एशियाई दवाओं में प्रयोग के नाम पर दक्षिण-पूर्व एशिया और चीन में भारी कीमत पर बेची जाती है। ताजा मामला
रायपुर एयरपोर्ट का है, जहां एक सीआईएसएफ जवान को 3.5 किलोग्राम खाल के साथ गिरफ्तार किया गया। जनवरी 2025 में जगदलपुर से 43 किग्रा खाल बरामद हुई। दिसंबर 2024 में पखांजूर में 13 किग्रा खाल के साथ 4 लोग पकड़े गए। 2021 में रायपुर में सीआईएसएफ का ही एक अन्य जवान पकड़ा गया था।
इसलिए मनाया जाता है जैव विविधता दिवस: हर साल 22 मई को मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस ताकि पृथ्वी पर मौजूद प्राकृतिक प्रजातियों की रक्षा की जा सके लोगों को विलुप्त होती जैव विविधता की गंभीरता समझाई जा सके और स्थानीय भागीदारी और नीति निर्माण में जनसंवेदना जोड़ी जा सके।
जागरुकता और प्राकृतिक आवास संरक्षण जरूरी
एस.के. गुप्ता, बर्ड लवर: पहाड़ी मैना के विलुप्त होने का मुख्य कारण इसका प्राकृतिक आवास का नष्ट होना है। खेती और खनन के कारण इसके प्राकृतिक आवास में कमी आई है। इसके अलावा, इस पक्षी का अपने मांस के कारण शिकार किया जाता है, क्योंकि लोगों में यह गलत अंधविश्वास है कि इसका मांस बुद्धि बढ़ाता है। साथ ही, पहाड़ी मैना की मानव जैसी बोलने की क्षमता के कारण इसके चूजों को चुरा कर पालतू बनाया जाना भी विलुप्ति के कारणों में शामिल है। इन सभी कारणों की रोकथाम, जागरूकता फैलाना, और प्राकृतिक आवासों का संरक्षण करना ही पहाड़ी मैना की विलुप्ति को रोक सकता है।
पेड़ों की दरारों में बनाती हैं घोंसला
International Biodiversity Day 2025: कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में हुए एक हालिया अध्ययन में सामने आया है कि पहाड़ी मैना सूखे साल, सेमल, साजा और जामुन जैसे पेड़ों की दरारों में घोंसला बनाती है। लेकिन अब वही पेड़ जलावन के लिए काटे जा रहे हैं। स्थानीय लोग गुलेल, फंदे और जहरीले शाखों की मदद से इन्हें पकड़ने में लगे हैं। दंतेवाड़ा और सुकमा जिले के सीमावर्ती जंगलों में मैना मित्र नामक एक विशेष दल जिसमें प्रशिक्षित आदिवासी युवा और वाइल्डलाइफ इंटर्न शामिल हैं। इनकी निगरानी का काम करते हैं। वे सुबह 6 बजे से लेकर शाम तक 6-10 किमी की ट्रेकिंग करके घोंसलों की स्थिति की रिपोर्टिंग करते हैं।
सुधीर कुमार अग्रवाल, प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव),
छत्तीसगढ़: पैंगोलिन और पहाड़ी मैना जैसी प्रजातियां लगातार मानव हस्तक्षेप, अवैध तस्करी और प्राकृतिक आवास की कटाई के चलते विलुप्ति की कगार पर हैं। पहाड़ी मैना तो सिर्फ राज्य पक्षी नहीं, बल्कि हमारी पारिस्थितिक विरासत का प्रतीक है। संरक्षण तभी संभव है जब स्थानीय लोग और युवा मिलकर निगरानी और जागरूकता अभियान में भाग लें।