8 से अधिक गांव की महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताया। ग्रामसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई। गांव की महिलाओं को नए तरीके से खेती करना सिखाया। इनमें से कुछ महिलाओं को कोदो की खेती के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। आज इन गांवों में महिलाएं मोटे अनाज की खेती कर रही हैं। इसके साथ ही कई लड़कियों ने दोबारा पढ़ाई शुरू कर दी है।
Sunday Guest Editor: पोखन..
पोखन बताती हैं कि बचपन से देखती थी कि
महिलाओं को परिवार के मुद्दों पर ज्यादा बोलने और निर्णय लेने की आजादी नहीं थी। महिलाओं के साथ इस तरह का व्यवहार देखती थी तो बहुत दुख होता था और उसी समय ठाना कि महिलाओं और बच्चों के लिए काम करना है। जब 18 साल हुई तो धमतरी में ही लोक आस्था सेवा संस्थान से जुड़ी और संस्थान की लता नेताम ने मुझे महिलाओं के लिए काम करने के लिए तैयार किया। संस्थान ने ही मुझे स्नातक तक की पढ़ाई कराई।
सोच यह: लगन के साथ शुरू किए काम कुछ समय बाद सफल होते हैं।
कोदो की खेती सिखाई
पोखन ने शुरू में एक गांव में काम किया और उसके बाद वह धीरे-धीरे 8 गांवों तक पहुंची। इन गांवों की 80 महिलाओं को एक और जहां उनके अधिकरों के लिए जागरूक किया वहीं दूसरी ओर लुप्त हो चुकी कोदो (चावल) की खेती कराकर महिलाओं को रोजगार से भी जोड़ा।