सोशल मीडिया मनोरंजन नहीं तनाव और टकराव का मैदान
सोशल मीडिया अब मनोरंजन बल्कि तनाव और टकराव का मैदान बनता जा रहा है। अब यह केवल फोटो या विचार साइस करने का मंच नहीं रहा, बल्कि एक ऐसा माध्यम बन गया है जहां निजी भावनाएं सार्वजनिक रूप से सामने लाई जा रही हैं।सोशल मीडिया,अस्थायी राहत या स्थायी मुसीबत
मनोरोग विशेषज्ञों का मानना है कि अपनी निजी भावनाओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर व्यक्त करना कभी-कभी अस्थायी राहत तो देता है, लेकिन यह तनाव, अवसाद और सामाजिक दूरियों का कारण बन सकता है। लगातार निगेटिव या आक्रामक पोस्ट देखने से मानसिक आघात भी होता है। युवाओं को इस बात को लेकर विशेष सतर्क रहने की जरूरत है।रिश्तों में बढ़ती दूरियां और तनाव
डॉ. संजय जैन, मनोरोग विशेषज्ञ बताते हैं कि सोशल साइट्स पर भावनाओं को बिना सोचे-समझे साझा करना मानसिक असंतुलन का संकेत है। कई लोग इससे अवसाद में चले जाते हैं, क्योंकि सार्वजनिक मंच पर अपमान या हमला, निजी बातचीत से कहीं अधिक गहरा असर छोड़ता है। इससे रिश्ते टूटते हैं और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है।सोशल मीडिया अब ट्रोलिंग का प्रमुख माध्यम बनता जा रहा
ट्रोलिंग, बदनाम करने या फेक प्रोफाइल बनाकर अश्लील सामग्री पोस्ट करने जैसे आरोप सामने आए है। कई बार ये विवाद इंस्टाग्राम स्टोरी या फेसबुक कमेट से शुरू होकर थाने और कोर्ट तक जा पहुंचे हैं।3 से 7 साल तक हो सकती है सजा ( कानूनी पहलू)
साइबर विशेषज्ञ निशीथ दीक्षित के अनुसार, फेक प्रोफाइल बनाना, ट्रोलिंग करना, अश्लील सामग्री पोस्ट करना या किसी की छवि खराब करना , ये सभी आईटी एक्ट और अन्य कानूनी धाराओं के तहत गंभीर अपराध हैं।इन अपराधों के लिए 3 से 7 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। उन्होंने यह भी बताया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर की गई हर गतिविधि रिकॉर्ड होती है, जिसे ट्रेस करना पूरी तरह संभव है।अपराधी अक्सर यह सोचते हैं कि वे पकड़े नहीं जाएंगे, लेकिन आज की तकनीक की मदद से उन्हें आसानी से पहचाना और पकड़ा जा सकता है।सावधानियां और सुझाव
-गुस्से या भावनात्मक तनाव में पोस्ट न करें।-किसी की फोटो या निजी जानकारी बिना अनुमति साझा न करें।
-फेक अकाउंट दिखे तो तुरंत रिपोर्ट करें, स्क्रीनशॉट संभालें।
-सार्वजनिक मंच पर बहस या टकराव से बचें।
-साइबर थाने में समय पर शिकायत जरूर करें।
-साइबर बुलिंग से निपटने के लिए सहायता