अंतरराष्ट्रीय शोध का केंद्र बनेगा रामायण पीठ
अयोध्या के अंतरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान के साथ एपीएस विश्वविद्यालय पहले ही एमओयू कर चुका है। इसके तहत अयोध्या के संस्थान की सहायता से रीवा में शोध और संगोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा। अब तक दो राष्ट्रीय संगोष्ठियां संपन्न हो चुकी हैं, जिनमें “वनवासी राम” और “दंडकारण्य में श्रीराम” विषयों पर चर्चा हुई। इसके अलावा, एक बड़ी प्रदर्शनी भी रीवा में आयोजित की गई थी। चित्रकूट और ओरछा में भी हो सकती है स्थापना
वनवास काल में श्रीराम ने चित्रकूट में लंबा समय बिताया था। विंध्य क्षेत्र को “वनवासी राम” की अवधारणा का प्रमुख केंद्र माना जाता है। इसी कारण रीवा के विश्वविद्यालय में रामायण शोध पीठ की स्थापना की योजना बनाई गई है। इसके अलावा, ओरछा में भी इसे स्थापित करने पर विचार हो रहा है। ओरछा में भगवान श्रीराम की पूजा राजा के रूप में होती है और विश्वविद्यालय के पास वहां भूमि भी उपलब्ध है। चित्रकूट भी श्रीराम के जीवन से जुड़ा एक महत्वपूर्ण स्थान है, जहां इस शोध पीठ के लिए विकल्प तलाशे जा रहे हैं।
श्रीराम वन गमन पथ से जुड़ेगा रामायण पीठ
मध्यप्रदेश सरकार श्रीराम वन गमन पथ (Shri Ram Van Gaman Path) के लिए 1450 किलोमीटर लंबा धार्मिक कॉरिडोर तैयार कर रही है। इसमें चित्रकूट, सतना, रीवा, पन्ना, शहडोल, जबलपुर, कटनी, अनूपपुर, विदिशा, होशंगाबाद सहित कई जिले शामिल हैं। इस कॉरिडोर में विभिन्न तीर्थ स्थलों का विकास किया जाएगा।
श्रीराम वन गमन पथ की राज्य स्तरीय परामर्शदात्री समिति के सदस्य नलिन दुबे ने बताया कि रीवा में रामायण पीठ की स्थापना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह क्षेत्र श्रीराम के वन गमन मार्ग का हिस्सा है। इस शोध पीठ के माध्यम से विंध्य क्षेत्र को आध्यात्मिक पर्यटन के क्षेत्र में आगे बढ़ाने की योजना है। एपीएसयू के कुलपति डॉ. राजेंद्र कुड़रिया ने बताया कि इस रामायण पीठ को अंतरराष्ट्रीय स्तर का शोध केंद्र बनाने की योजना है। इसमें श्रीराम और रामायण से जुड़े हर पहलू पर शोध की व्यवस्था की जाएगी। इससे न केवल शोधार्थियों को लाभ मिलेगा, बल्कि यह विंध्य क्षेत्र को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से वैश्विक पहचान दिलाने में भी मददगार होगा।