scriptन बजी घंटियां, न खुले बाजार… सन्नाटे और शोक में बीता दिन, राजस्थान में यहां अक्षय तृतीया को नहीं होते मांगलिक कार्य | No Wedding In Chauth Ka Barwara With 18 Villages On Akshaya Tritiya Read CKB Chauth Mata Mandir History | Patrika News
सवाई माधोपुर

न बजी घंटियां, न खुले बाजार… सन्नाटे और शोक में बीता दिन, राजस्थान में यहां अक्षय तृतीया को नहीं होते मांगलिक कार्य

Chauth Mata Ka Mandir History: नवविवाहित जोडों की मौत हो गई। जिनके कुछ स्मारक आज भी खंडहर अवस्था में चौथ माता खातालाब के जंगलों में है। ऐसे में इस दिन के बाद से आज तक अक्षय तृतीया पर बरवाडा व 18 गांवों में शोक मनाया जाता है।

सवाई माधोपुरApr 30, 2025 / 06:21 pm

Akshita Deora

Akshaya Tritiya 2025: अक्षय तृतीया के अबूझ सावे पर जहां प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में गली-गली मंगल गीत गाए जाते हैं। साथ ही शादी की शहनाइयों की गूंज सुनाई देती है। वहीं प्रदेश के सवाईमाधोपुर जिले के चौथकाबरवाडा क्षेत्र में 18 गांव ऐसे हैं, जहां अक्षय तृतीया पर पूरी तरह सन्नाटा रहता है। इस मौके पर यहां बैण्डबाजों के स्वर सुनाई नहीं देते और न ही गांवों में कोई मंगल कार्य होते हैं। सदियों से चली आ रही इस परम्परा को यहां के लोग आज भी बिना किसी तर्क-वितर्क के निभाते आ रहे हैं।
इतिहासकार एवं जानकार बताते हैं कि क्षेत्र के 18 गांवों में शादियों की शहनाई नहीं गूंजने के पीछे सालों पुराना रोचक किस्सा जुड़ा हुआ है। अक्षय तृतीया के अवसर पर चौथमाता मंदिर में सेकंडों नव विवाहित दुल्हा-दुल्हन माता के दर्शनों के लिए आए थे। मंदिर में नवविवाहित जोडों की संख्या अधिक होने के कारण दर्शन के समय नवविवाहित जोडे आपस में बदल गए। इससे वहां पर गलतफहमी में हंगामा हो गया। हंगामा इतना बडा की मारपीट व खूनखराबे की नौबत आ गई। इसी दौरान दुल्हों के पास कटार व तलवार निकलने से खूनी सघर्ष शुरू हो गया।
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झगडा इतना बडा की कई नवविवाहित जोडों की मौत हो गई। जिनके कुछ स्मारक आज भी खंडहर अवस्था में चौथ माता खातालाब के जंगलों में है। ऐसे में इस दिन के बाद से आज तक अक्षय तृतीया पर बरवाडा व 18 गांवों में शोक मनाया जाता है। इस दिन इन 18 गांवों में किसी भी घर में कढाई नहीं चढती है और न ही खुशी मनाई जाती है। न ही अक्षय तृतीया पर कोई शादी की जाती है। और तो और घरों में सब्जी तक में हल्दी तक नहीं डाली जाती है। गांव के किसी भी मंदिर में आरती के वाद्ययंत्र नहीं बजाए जाते हैं।
ऊंचाई पर बांध दी जाती हैं मंदिर की घंटियां- चौथमाता के मंदिर में लगे घंटों को भी अक्षय तृतीया की पूर्व संध्या पर उंचाई पर बांध दिया जाता है, ताकि कोई इन्हे बजा ना सके। यहाॅ चौथ माता मार्ग पर रियासत काल के दूल्हा-दुल्हन के चबूतरे बने हुए हैं। आज भी इलाके के कई समुदायों के लोग यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं। लेकिन आखातीज के अबूझ सावे पर कोई भी मंगल कार्य नही किया जाता है। आज भी सदियों से चली आ रही इस परम्परा को यहां के लोग बिना तर्क। वितर्क के निभाते आ रहे हैं।

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