मंदिर का ध्वज बना हुआ है पहली
पुरी के जगन्नाथ मंदिर के शिखर (गुंबद) पर लहराता ध्वज भी वैज्ञानिकों के लिए पहली बना हुआ है। आमतौर पर मंदिरों में हवा जिस दिशा में चलती है, ध्वज उसी दिशा में लहराते हैं, लेकिन इस मंदिर का ध्वज हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराता है।बताया जाता है कि दिन में समुद्र से भूमि की ओर और रात में भूमि से समुद्र की ओर हवा बहती है। लेकिन जगन्नाथपुरी में यह नियम भी उल्टा होता है। यहां दिन में हवा भूमि से समुद्र की ओर बहती है और रात में समुद्र से भूमि की ओर। इस रहस्य की कोई स्पष्ट वैज्ञानिक व्याख्या अभी नहीं मिल पाई है।
जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से नहीं उड़ता कोई पक्षी या विमान
पुरी का जगन्नाथ मंदिर भारत के उन चुनिंदा स्थलों में शामिल है, जहां मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी उड़ता नहीं देखा गया है। यहां तक कि कोई हवाई जहाज भी इस मंदिर के ऊपर से नहीं गुजरता। इसका कारण भी लोगों को मालूम नहीं चल सका है।
45 मंजिला इमारत के बराबर ऊंचाई पर चढ़ता है पुजारी
मंदिर के गुंबद की ऊंचाई लगभग 214 फीट है, जो किसी आधुनिक 45 मंजिला इमारत के बराबर है। हर दिन एक पुजारी बिना किसी आधुनिक सुरक्षा उपकरण के इस ऊंचाई तक चढ़कर ध्वज बदलता है। कहा जाता है कि यदि एक दिन भी यह ध्वज नहीं बदला गया, तो मंदिर 18 साल तक के लिए बंद हो जाएगा।
महाप्रसाद कभी नहीं होता बर्बाद
पुरी मंदिर में रोजाना हजारों श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद बनाया जाता है। लेकिन चमत्कार यह है कि न तो कभी प्रसाद कम पड़ता है और न ही ज्यादा बचता है। फिर चाहे 10 हजार श्रद्धालु हों या 10 लाख, भगवान का महाप्रसाद सभी को समान रूप से मिलता है। इसे महाप्रसाद का चमत्कार कहा जाता है।

मंदिर की छाया नहीं पड़ती धरती पर
जगन्नाथ मंदिर का एक और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इसके गुंबद की छाया दिन में कभी जमीन पर नहीं पड़ती। यह कैसे संभव है, आज तक यह भी रहस्य बना हुआ है।
विश्व की सबसे बड़ी चलती मूर्तियों की यात्रा
हर साल आयोजित होने वाली रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को तीन विशाल रथों से नगर भ्रमण कराया जाता है। ये मूर्तियां इतनी भारी होती हैं कि उन्हें आम दिनों में मंदिर के अंदर से बाहर निकालना असंभव है। लेकिन रथ यात्रा के दिन स्वयंसेवकों की भीड़ बिना किसी बाधा के इन्हें रथ तक पहुंचा देती है।