Sajjangarh Sanctuary Fire: 4 दिन बाद भी नहीं बुझ पा रही राजस्थान में लगी आग, खाली कराए घर, पर्यटकों का रोका प्रवेश
Rajasthan News: अमूमन हर साल सज्जनगढ़ की पहाड़ियां धधकती है…जैसे ही आग की लपटें उठतीं हैं…वनकर्मी हाथों में झाड़ू, पानी की बाल्टियां, पेड़ों की टहनियां जैसे ’परम्परागत हथियार’ लेकर जंगलों में निकल पड़ते हैं आग बुझाने।
Udaipur Fire Update: सज्जनगढ़ अभयारण्य की पहाड़ियां पिछले तीन दिन से सुलग रही हैं। शॉर्ट सर्किट से सोमवार को लगी चिंगारी तीसरे दिन तेज हवा के कारण विकराल हो गई। शाम तक आग की लपटें और धुएं के गुबार उठते रहे। करीब एक दर्जन से अधिक दमकलों के फेरों और दर्जनों वन कार्मिकों के प्रयासों के बावजूद आग बेकाबू रही। आग के कारण पर्यटकों का प्रवेश रोक दिया गया। बायोलॉजिकल पार्क के आसपास के कुछ घरों को भी ऐहतियात के तौर पर खाली कराया गया। जिला कलक्टर नमित मेहता, एसपी योगेश गोयल, सीसीएफ वाइल्ड लाइफ सुनील छिद्री, डीएफओ सुनील कुमार सिंह समेत प्रशासन, पुलिस और वन अधिकारी मौके पर पहुंचे और घटनाक्रम पर नजर रखी। सांसद मन्नालाल रावत ने भी मौका मुआयना कर सुरक्षा प्रबंधों को लेकर निर्देश दिए।
दरअसल, पहाड़ियों के सुलगने का सिलसिला सोमवार को उस वक्त शुरू हुआ, जब अभयारण्य में शॉर्ट सर्किट से आग लग गई। दो दिन से कभी तेज तो कभी धीमी लपटें उठतीं रही। गुरुवार को तेज हवाएं चलने से आग ज्यादा फैल गई। सूचना के बाद उदयपुर से दमकल की 10 से ज्यादा गाड़ियां मौके पर पहुंची। कई फेरे करते हुए आग पर काबू पाने की कोशिश की जा रही है। गुरुवार दोपहर आग की लपटें बायोलॉजिकल पार्क तक पहुंच गई। वन अधिकारियों के मुताबिक देर रात तक काफी हद तक आग पर काबू पा लिया था।
वाइल्ड लाइफ और वन रेंज उदयपुर के सभी कार्मिकों को सज्जनगढ़ की आग बुझाने के लिए तैनात किया गया। वन अधिकारी भी देर रात तक मौके पर रहे। जिला कलक्टर नमित मेहता रात को दोबारा सज्जनगढ़ पहुंचे और हालात का जायजा लिया।
तीन दिन से अभयारण्य में आग लगी हुई है। गुरुवार को शाम तक काफी हद तक काबू पा लिया था। हवा तेज थी और पतझड़ के कारण भी रुक-रुक कर लपटें उठ रही थी। आग पर काबू पाने के लिए बड़ी संख्या में वन कार्मिक जुटे हुए हैं।
सुनील छिद्री, सीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) उदयपुर
सतर्कता के तौर पर खाली कराए घर, पर्यटकों का प्रवेश बंद
प्रशासन और वन विभाग ने आबादी क्षेत्र के कुछ घरों को खाली कराया। उन घरों से गैस सिलेंडर हटवा लिए गए। मवेशियों को भी शिफ्ट कराया गया। आग को देखते हुए अभयारण्य और बायोलॉजिकल पार्क में पर्यटकों का प्रवेश बंद कर दिया गया। सुबह प्रवेश कर चुके पर्यटकों को वापस भेज दिया।
…और यहां फायर लाइन के कारण बुझा ली आग
बांकी वन खण्ड में भी बुधवार को आग लग गई। गनीमत रही कि यहां फायर लाइन तैयार थी। वन कार्मिकों ने फायर लाइन के जरिए तत्काल आग पर काबू पा लिया। फायर लाइन में 6 से 8 मीटर तक के इलाके में पूरी तरह से सफाई की जाती है, ताकि आग आगे नहीं बढ़ सके। आग बुझाने वाले कार्मिक भी आसानी से पहुंच सकते हैं।
अमूमन हर साल सज्जनगढ़ की पहाड़ियां धधकती है…जैसे ही आग की लपटें उठतीं हैं…वनकर्मी हाथों में झाड़ू, पानी की बाल्टियां, पेड़ों की टहनियां जैसे ’परम्परागत हथियार’ लेकर जंगलों में निकल पड़ते हैं आग बुझाने। आग की लपटें और धुंआ आगे-आगे और वनकर्मी पीछे-पीछे। तत्काल न आग बुझ पाती है और न ही जंगल बच पाता है। माथापच्ची और अफरा-तफरी होती है वह अलग। सिर्फ इसलिए कि आग की घटनाओं को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। न ठोस उपाय किए गए। पिछले तीन दिन से सुलग रही सज्जनगढ़ की पहाड़ियां भी इसी बेपरवाही का नतीजा है। गुरुवार को आग की लपटें सज्जनगढ़ किले और बायोलॉजिकल पार्क की तरफ बढ़ चुकी थी। गनीमत रही कि शाम होते-होते हवा की रफ्तार कम हुई। इससे काफी हद तक काबू पा लिया गया, लेकिन भविष्य का खतरा हमेशा बना हुआ है। फायर लाइन के अभाव में आग पर काबू पाना मुश्किल हो रहा है।
झीलों के शहर के नाम से दुनियाभर में प्रसिद्ध खूबसूरत शहर पर आग का खतरा सालों से बना हुआ है। जिस शहर का लुत्फ उठाने हर साल करीब 20 लाख सैलानी आ रहे, वहां के जंगल, पहाड़ और वादियां सुरक्षित नहीं है। सज्जनगढ अभयारण्य और बायोलॉजिकल पार्क शहर से सटा हुआ है। यहां हर साल चिंगारी उठती है और कई दिन तक अफरा-तफरी रहती है। वनस्पति जलकर राख हो जाती है। जब आग लगती है तो सब जुट जुटते हैं, लेकिन स्थायी समाधान नहीं किया जा रहा।
एकलिंगगढ़ छावनी घटना से भी नहीं ली नसीहत
सज्जनगढ़ की पहाड़ियों में आग की यह घटना पहली नहीं है। पहले भी कई घटनाएं हुई, लेकिन वन विभाग, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने नसीहत नहीं ली। बता दें कि कुछ साल पूर्व एकलिंगगढ़ छावनी में बड़ी आग लगी थी। इसे बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर बुलाना पड़ा। सज्जनगढ़ अभयारण्य तो हर साल सुलगता है। अभयारण्य के चारों तरफ फेंसिंग है, जिसमें घास बहुतायत में है। जब भी आग लगती है घास के कारण लपटें कई दिन तक नहीं बुझती।
उदयपुर के कई इलाकों में हर साल आग लगती है। यह चिंतनीय है। आग बुझाने के बाद सब भूल जाते हैं। आग की घटनाओं को रोकने कोई ठोस रणनीति पर काम नहीं हो रहा। आग पर काबू पाने के लिए फायर लाइन आवश्यक है। फायर लाइन की नियमित सार-संभाल भी रखनी होनी है। इसकी चौड़ाई कम से कम 10 मीटर जरूरी है। फायर प्लान वन विभाग के वर्किंग प्लान में शामिल होना चाहिए। पहले तो इसके लिए अलग से बजट भी मिलता था। अब नहीं मिलता है। सज्जनगढ अभयारण्य में पिछले तीन दिन से लग रही आग को नहीं बुझा पाने का कारण प्लानिंग का अभाव है। दूसरा बड़ा कारण, गोरेला गांव से पैलेस तक जाने वाली बिजली लाइन है। इस लाइन से शॉर्ट सर्किट होता है। इसकी अण्डर ग्राउंड केबलिंग होनी चाहिए।