ये है प्रमुख समस्याएं
1- नो व्हीकल जोन अब तक नहीं सके अंदरुनी शहर जाम से परेशान है। यहां पर पर्यटन सीजन में सबसे ज्यादा हालत खराब होते हैं। चारपहिया वाहनों के अंदर घुसते ही यहां निकलना मुश्किल हो जाता है। पिछले लम्बे समय से यहां पर नो व्हीकल जोन को लेकर कार्रवाई चल रही है, लेकिन अब तक इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। कई बार सर्वे हुए, प्लान बने यहां तक की व्यापारियों ने अपने स्तर पर प्रायोगिक तौर पर शनिवार शाम को नो व्हीकल जोन किया, लेकिन कुछ ही समय बाद फिर वहीं स्थिति हो गई। 2- सीमांकन नहीं होने से अस्तित्व खो रहे तालाब पर्यटन नगरी के साथ ही उदयपुर झीलों व जलाशयों की भी नगरी है। शहर व पेराफेरी क्षेत्र में करीब 44 तालाब व जलाशय थे। जिनमें से आधे गायब हो गए, फिर भी प्रशासन गंभीर नहीं हुआ। अभी भी फूटा तालाब, जोगीतालाब, रूपसागर, कैलाशपुरी, भुवाणा तालाब, मंडोपा,फांदा तालाब सहित कई ऐसे जलाशय हैं जहां लगातार कब्जे हो रहे हैं। केचमेंट में भूमाफिया ने अतिक्रमण करते हुए कई जगह भूखंडों की प्लानिंग काट दी, लेकिन सीमांकन आज तक नहीं हुआ।
3- हर बार नया बहाना, अटका पड़ा है नाइट बाजार पर्यटन नगरी होने के बावजूद यहां पर नाइट बाजार खोलने का प्रस्ताव लम्बे समय से अटका पड़ा है। कभी सुरक्षा का तो कभी शहर के बीचोंबीच जगह नहीं होने का हवाला दिया, लेकिन अब तक नहीं खोला। नाइट बाजार के नहीं खुलने से आने वाले पर्यटकों को यहां रात में खाना नहीं मिल पा रहा, वहीं शहर के कॉलेज में पढऩे वाले बाहरी राज्यों व जिलों के छात्र रात में भटकते है, वे ऐसी स्थिति में हाइवे पर जाकर हादसे के शिकार होते है, पर्यटक तो हाइवे पर जाने पर वापस नहीं आते है।
4- डीजल टेम्पो सिटी से नहीं कर पाए बाहर शहर में अभी भी कई रूट पर डीजल टेम्पो चलते हुए प्रदूषण फैला रहे हैं। तीन साल पहले इन्हें शहर से बाहर करते हुए सीएनजी टेम्पो चलाने की कवायद चली, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। वर्तमान में अभी भी 2 से ढाई हजार डीजल टेम्पो व छोटे ऑटो चल रहे हैं, जिसमें शहर से बाहर कर प्रदूषण मुक्त किया जा सकता है। परिवहन विभाग ने यातायात सलाहकार समिति में कई बार उन्हें बाहर करने की बात कही, लेकिन इन टेम्पो चालकों का न तो रूट दिए न हीं उन्हें बाहर किया।
5- पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी, कैसे कम हो यातायात शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी होने से हर व्यक्ति अभी भी अपने वाहनों से आ रहा है, जिससे शहर में यातायात का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। अभी शहर में 26 सिटी बसें विभिन्न रूट पर चल रही है, जो यात्री भार से खचाखच भरी है। कई रूट ऐसे हैं जहां इन बसों की और जरुरत है। मुख्यमंत्री की बजट घोषणा में शहर को 50 नई बसें स्वीकृत की गई, लेकिन ये अब तक नहीं मिल पाई। ऐसी स्थिति में लोग अधिक किराए में ऑटो, टेम्पो, रिक्शा आदि में सफर कर रहे हैं।
6- बोटलनेक हटे तो एक और खुले राह शहर में मेवाड़ मोटर्स की गली का एक ऐसा बोटलनेक है जो लम्बे समय से अटका पड़ा है। कानूनी दांव पेंच के बीच कोर्ट में चल रहे इस प्रकरण में अब तक जनप्रतिनिधियों व निगम ने तो वहां दुकानदारों से बातचीत की न हीं कोर्ट में प्रभावी पक्ष रखा। यह बोटलनेक महज समझाइश पर खुल सकता है। इसके खुलने से सूरजपोल व कुम्हारों का भट्टा की तरफ से आने जाने वाले वाहनों को सुगम मार्ग मिल पाएगा। यहां पर महज दो दुकानों से मामला अटका पड़ा है।
7- जनाना भवन के अभाव में परेशान महिलाएं आरएनटी मेडिकल कॉलेज व संभाग के सबसे बड़े महाराणा भूपाल चिकित्सालय के अधीन जनाना चिकित्सालय के हाल बेहाल है। पिछले आठ साल के नए भवन की फाइल अभी तक सरकारी दफ्तरों में ही घूम रही है। नया भवन बनना तो दूर पुराने भवन को भी अब गिराया नहीं जा सका। ऐसी स्थिति में जनाना अस्पताल में आने वाली मां-बहनों की हालत काफी खराब है। यह अस्पताल अभी अलग-अलग भवनों में चल रहा है, जिससे कई बार जच्चा-बच्चा की जान पर तक बन आ रही है।
8- ई-व्हीकल चार्जिंग स्टेशन खोलने में भी ढिलाई राज्य सरकार जहां शहर को प्रदूषणमुक्त करने के लिए ई-व्हीकल खरीद पर जोर देते हुए सब्सिडी दे रही है वहीं चार्जिंग स्टेशन खोलने में ढिलाई बरती जा रही है जिससे इसकी बिक्री नहीं बढ़ पा रही है। यूडीए व निगम ने 35 चार्जिंग स्टेशन खोलने के लिए संबंधित फर्म को अब तक अलग-अलग जगह पर 800 स्कवायर फीट के भूखंड उपलब्ध करवा दिए, लेकिन वे अब तक इसे नहीं खोल पाए। नतीजा अब तक शहर में सिर्फ 7000 दुपहिया व 300 चारपहिया ही ईवी है।
9- बच्चों के गेमिंग जोन की फाइल ही हो गई गायब पर्यटकों व शहरवासियों की पर्यटक स्थलों पर रेलमपेल के बावजूद पूरे शहर में बच्चों के लिए एक भी गेमिंग जोन नहीं है। 0 से 10 साल के बच्चों के लिए गेमिंग जोन के लिए निगम ने प्लान बनाते हुए सुखाडिय़ा सर्कल पर जगह पर फाइनल की लेकिन जगह का विवाद होने के बाद फाइल ही निगम से गायब हो गई। बच्चों के गेमिंग जोन के नहीं होने से पर्यटक व शहरवासी परेशान है। वे मॉल व अन्य जगह पर बच्चों को ले जाने पर मजबूर है।
10- कब मिलेगी झीलों की साफ सफाई से मुक्ति शहर में जगप्रसिद्ध पिछोला झील में साफ सफाई से मुक्ति अब तक नहीं मिल पाई। वहां अभी तक सीवरेज सीधा झीलों में गिर रहा है। इस बात को सभी जानते है कि आसपास की होटलों की जूठन व गंदगी को झीलों में डाला जा रहा है, इसी कारण पिछोला में जलीय घास लगातार फैलती ही जा रही है। बार-बार अवगत करवाने के बावजूद प्रशासन व निगम ने अब तक न तो होटल वालों पर सख्ती दिखाई और न ही उन्हें एसटीपी लगाने के लिए पाबंद किया।