2024 में रिकॉर्ड तोड़ कमाई
अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024 (1 अक्टूबर 2023 से 30 सितंबर 2024) में अमेरिका ने हथियारों और रक्षा समझौतों के जरिए लगभग 318.7 बिलियन डॉलर (करीब 27.57 लाख करोड़ रुपये) का कारोबार किया। इसमें से 200.8 बिलियन डॉलर (लगभग 17.37 लाख करोड़ रुपये) की कमाई अमेरिकी कंपनियों ने हथियार बेचकर की। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट में भी बताया गया है कि पिछले पांच सालों में वैश्विक हथियार व्यापार में अमेरिका का दबदबा बढ़ा है, जिसने रूस को पीछे छोड़ दिया। भारत-पाक तनाव और अमेरिका की रणनीति
हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए
आतंकी हमले के बाद भारत और
पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। इस दौरान अमेरिका ने दोनों देशों के बीच शांति की अपील तो की, लेकिन साथ ही दोनों को हथियार बेचने का कारोबार भी जारी रखा। एक ओर अमेरिकी विदेश विभाग ने कश्मीर में हिंसा को “अवैध और अस्वीकार्य” करार दिया, वहीं दूसरी ओर भारत और पाकिस्तान को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति कर मुनाफा कमाया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कई पोस्ट में दावा किया गया कि भारत-पाक तनाव के बीच अमेरिका ने करोड़ों डॉलर के हथियार सौदे किए।
सऊदी अरब के साथ मेगा डील
अमेरिका ने हाल ही में सऊदी अरब के साथ 142 बिलियन डॉलर (करीब 12 लाख करोड़ रुपये) के हथियार सौदे को अंतिम रूप दिया। इस सौदे को क्षेत्रीय सैन्य शक्ति के रूप में सऊदी अरब की स्थिति को मजबूत करने वाला माना जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे व्यापारिक साझेदारी का मास्टरस्ट्रोक बताते हुए कहा कि सऊदी अरब से बेहतर साझेदार कोई हो ही नहीं सकता।
आलोचना में अमेरिका
अमेरिका की इस दोहरी नीति की वैश्विक मंच पर खूब आलोचना होती है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका जानबूझकर तनाव को बढ़ावा देता है ताकि हथियारों की बिक्री बढ़ सके। X पर एक यूजर ने लिखा, “पहले देशों को युद्ध में झोंको, फिर हथियार बेचो, दवाएं बेचो और पुनर्निर्माण के नाम पर मुनाफा कमाओ।” इराक, अफगानिस्तान और सीरिया जैसे देशों को अमेरिकी नीतियों की “प्रयोगशाला” करार दिया गया।
क्या है अमेरिका की रणनीति?
अमेरिका की ‘इंटरवेंशन पॉलिसी’ के तहत वह वैश्विक संघर्षों में दखल देता है और फिर शांति की अपील करता है। चाहे भारत-पाकिस्तान हो, चीन-ताइवान हो या अजरबैजान-आर्मेनिया, अमेरिका हर तनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह रणनीति न केवल उसकी सैन्य और आर्थिक ताकत को बढ़ाती है, बल्कि अन्य उभरती शक्तियों को दबाने का भी काम करती है।