भारत की नजर में ऐसे समझौते चिंता का विषय
भारत ने इस कदम पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “CPEC का विस्तार संप्रभुता का उल्लंघन है, विशेषकर जब यह भारत के विरोध वाले क्षेत्रों से होकर गुजरता है। अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के साथ ऐसे समझौते भारत के लिए चिंता का विषय है।” चीन ने अपने पक्ष में कहा है कि यह परियोजना “केवल आर्थिक विकास के लिए” है, न कि किसी देश के खिलाफ है।
भारत अब ईरान के चाबहार बंदरगाह पर विचार कर रहा
भारत अब ईरान के चाबहार बंदरगाह और इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) को तेज़ी से विकसित करने की रणनीति पर विचार कर रहा है ताकि क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखा जा सके। इसके अलावा, भारत ने अफगानिस्तान के लोगों को संबोधित करते हुए यह दोहराया है कि वह एक स्वतंत्र और संप्रभु अफगानिस्तान का समर्थन करता रहेगा।
क्या है चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर
गौरतलब है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा CPEC (China-Pakistan Economic Corridor) एक बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है, जिसे चीन और पाकिस्तान ने मिल कर शुरू किया है। इसका उद्देश्य चीन के काशगर शहर से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक एक आर्थिक और रणनीतिक गलियारा बनाना है। यह एक आर्थिक परियोजना होने के साथ-साथ एक भू-राजनीतिक शक्ति संतुलन का भी हिस्सा है।
CPEC के विस्तार से ईरान, रूस और अमेरिका पर भी प्रभाव
बहरहाल CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार केवल भारत ही नहीं, बल्कि ईरान, रूस और अमेरिका के रणनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है। चीन के इस कदम से उसे न केवल सेंट्रल एशिया तक लॉजिस्टिक पहुंच मिलेगी, बल्कि यह तालिबान को अंतरराष्ट्रीय वैधता भी दिला सकता है। इससे चीन की डिप्लोमैटिक लीडरशिप को भी बढ़ावा मिल सकता है, खासकर उस समय में जब पश्चिमी देश तालिबान से दूरी बनाए हुए हैं। एक्सक्लूसिव इनपुट के लिए क्रेडिट: यह रिपोर्ट “बीजिंग इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्ट्रैटेजीज़” के वरिष्ठ विश्लेषक लियांग होंगवेई और काबुल स्थित इंडिपेंडेंट थिंक टैंक ‘पॉलिसी एंड पीस फाउंडेशन’ की ओर से जानकारी के इनपुट पर आधारित है।