हाफिज सईद और पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर के संयुक्त पोस्टर प्रदर्शित
पाकिस्तान के लाहौर में बुधवार को आयोजित एक कथित धार्मिक रैली, जो वास्तविकता में भारत-विरोधी प्रचार मंच बन गई। रैली में एक और चिंताजनक बात यह रही कि वहां हाफिज सईद और पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर के संयुक्त पोस्टर प्रदर्शित किए गए, जो आतंक और सत्ता के बीच खतरनाक गठजोड़ का संकेत हैं। तल्हा सईद ने अपने भाषण में भारत को सिंधु जल समझौता रोकने की धमकी दी, और कहा कि “अल्लाह उन लोगों से प्यार करता है जो जिहाद करते हैं।”
पाकिस्तान में आतंकवाद को अब संस्थागत संरक्षण मिल रहा है
सीएनएन को शीर्ष खुफिया सूत्रों ने बताया कि यह पूरा घटनाक्रम दर्शाता है कि पाकिस्तान में आतंकवाद को अब संस्थागत संरक्षण मिल रहा है। “ऑपरेशन बनयान अल-मर्सस” और “सिंदूर ऑपरेशन” के संदर्भ में तल्हा सईद ने भारत को पानी के मुद्दे पर ‘गला घोंटने’ की धमकी दी, जो न सिर्फ उकसावे का मामला है, बल्कि इसे आतंक का सीधा समर्थन माना जा रहा है।
रिएक्शन: तल्हा का बयान एक गंभीर सुरक्षा चुनौती
भारतीय खुफिया एजेंसियों ने तल्हा के बयान को गंभीर सुरक्षा चुनौती करार दिया है। पूर्व राजनयिकों और रक्षा विशेषज्ञों ने इसे पाकिस्तान की दोहरी नीति का सुबूत बताया है। भारत में विपक्ष ने केंद्र सरकार से इस पर सख्त कूटनीतिक प्रतिक्रिया की मांग की है।
इस मुददे पर सुगलते हुए सवाल
पाकिस्तान के राजनीतिक हलकों में इस रैली को लेकर कोई विरोध क्यों नहीं हुआ? क्या पाकिस्तान FATF ग्रे लिस्ट में फिर से जाने की ओर बढ़ रहा है? भारत इस मंच से दिए गए खतरनाक बयानों को UN और OIC में कैसे उठाएगा? “राजनीतिक वैधता” के साये में आतंक: पाकिस्तानी स्पीकर और राजनेता आतंक से जुड़े मंच पर क्यों मौजूद थे?
“नया पाकिस्तान” बनाम “पुराना आतंक”: इमरान खान और नवाज शरीफ के बाहर होने के बाद क्या नई सत्ता और ज्यादा कट्टरपंथी हो रही है? FATF, IMF और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद ये रैली कैसे संभव हुई?
एक्सक्लूसिव इनपुट : पंथी संगठनों के बीच तालमेल का ‘पायलट प्रोजेक्ट’
खुफिया सूत्रों के अनुसार, तल्हा सईद की यह रैली पाकिस्तानी सेना और चरमपंथी संगठनों के बीच तालमेल का ‘पायलट प्रोजेक्ट’ मानी जा रही है। सूत्रों ने दावा किया कि यह कार्यक्रम “ऑपरेशन बनयान अल-मर्सस“ की सालगिरह के बहाने आयोजित किया गया था, लेकिन असली मकसद भारत विरोधी एजेंडा को स्थानीय राजनीति में घुसाना था। इसमें पाकिस्तानी सेना की “डिफेंस कम्युनिकेशन विंग“ ने पर्दे के पीछे तकनीकी और प्रचार सहयोग दिया। रैली के बाद, लाहौर के गुप्त स्थानों पर कुछ चरमपंथी नेताओं के साथ बंद कमरे की बैठक भी हुई जिसमें POK में सक्रिय गुटों को “जल्द सक्रिय करने” की रणनीति पर चर्चा की गई।