scriptHoli 2025: भिनाय की कोड़ामार होली का नाम सुनते ही कांपने लगती है रूह, गांव के लोग 2 हिस्सों में बंटकर उतरते हैं मैदान में | Historical Kodamar Holi of Bhinay: Villagers have been following tradition for 400 years | Patrika News
अजमेर

Holi 2025: भिनाय की कोड़ामार होली का नाम सुनते ही कांपने लगती है रूह, गांव के लोग 2 हिस्सों में बंटकर उतरते हैं मैदान में

अजमेर से करीब 55 किमी दूर भिनाय गांव में खेली जाने वाली इस कोड़ामार होली को देखने प्रदेशभर से लोग आते हैं। भिनाय के प्रवासी भी होली के दंगल में जुटते हैं। 400 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को भिनाय के रण बांकुरे आज भी निभा रहे हैं।

अजमेरMar 13, 2025 / 05:46 pm

Santosh Trivedi

bhinay holi
चन्द्र प्रकाश जोशी/ ओम प्रकाश शर्मा

भिनाय (अजमेर)। भिनाय की कोड़ामार होली का नाम सुनते ही रूह कांपने लगती है। तय सीमा में बंटे गांव के दो हिस्सों के लोग चौक-कावड़िया नाम की टोली के रूप में मुख्य बाजार के मापा पर आमने सामने उतरते हैं और एक दूसरे पर कोड़े बरसाते हैं। एक-दूसरे गुट के खिलाड़ियों को कोड़ा मारकर खदेड़ते हुए तय दूरी तक ले जाते है। इससे ही हार-जीत तय होती है।
अजमेर से करीब 55 किमी दूर भिनाय गांव में खेली जाने वाली इस कोड़ामार होली को देखने प्रदेशभर से लोग आते हैं। भिनाय के प्रवासी भी होली के दंगल में जुटते हैं। 400 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को भिनाय के रण बांकुरे आज भी निभा रहे हैं। कभी फाल्गुन माह लगते ही लोगों में होली की खुमारी चढ जाती थी। लेकिन अब घुलंडी के दिन से शुरू होकर अगले तीन दिन तक रहती है।

पहले भैरूजी की स्थापना, फिर दंगल

भिनाय के कोवड़ा बाजार में भैरुजी की स्थापना के साथ कोवड़ा मार होली का शुभारंभ होता है। दो से तीन दिन तक कोड़ामार के मुकाबले होते हैं। फिर तय सीमा पर दोनों टीमें खड़ी होती हैं और ढोल की थाप व बांक्यां की गूंज पर जोशीले अंदाज में कोड़ामार शुरू होती है। छतों पर हजारों लोग देखने पहुंचते हैं।

मैदान में उतरी राजा-रानी की टीम….

राजा महाराजाओं की रियासतों के समय से ही खेली जा रही कोड़ा मार होली में गांव बराबर दो हिस्सों में बंट जाता है। इनमें एक राजा की टीम होती तो दूसरी रानी की टीम। आधे गांव की एक टीम चौक कहलाती है, वहीं आधे गांव की दूसरी टीम कावड़िया कहलाती है। दोनों तरफ से तकरीबन 10 से 20 खिलाड़ी कोड़ामार होली खेलने के लिए उतरते हैं। पूर्व में राजा अपनी सेना में सैनिकों की भर्ती के लिए यह चयन प्रक्रिया अपनाते थे। साथ ही लोक संस्कृति की परंपरा को संजोये रखते थे।

पानी में भिगोकर लकड़ी की तरह सख्त बनाते हैं कोड़े

गुलबांस के रस्से को दो से तीन लड़ा गूंथ कर कोड़े बनाए जाते हैं। कोडों के ऊपर गांठ नुमा उभार होता है। होली से पहले इन्हें पानी में भिगोकर रख देते हैं। बाहर निकालने पर लट्ठ की तरह सख्त हो जाते हैं। इनसे एक दूसरे पर प्रहार करते हैं। खेलने वाले लोग सिर पर साफा आदि बांधते हैं ताकि सीधी चोट नहीं लगे।

इनके नाम का बजता था डंका

कोड़ामार होली में कस्बे के कई नामी खिलाड़ी रहे हैं। इनके नाम से ही विपक्षी टीम घबरा जाती थी। इनमें सोभागमल सुराणा, मदन लाल जोशी, दुर्गा दत्त जोशी, जगदीश आचार्य, रतन लाल वर्मा, श्रवण लाल मिश्रा, सोमदत्त जोशी, जगदीश आचार्य, दुदा गुर्जर, बनवारी लाल मिश्रा, भंवरलाल धाबाई, रतनलाल धाबाई, श्रीलाल धाबाई, प्रेम जोशी, मोहम्मद पीर, असफाक खान सहित कई पुराने खिलाड़ियों का जलवा रहता था।

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