काश्तकारों के घर बैलों के बिना नजर आते हैं सूने
सरकार की यह घोषणा इस पहचान को जीवित रख सकेगी। पहले सांझ ढले किसान अपने खेतों से लौटते थे तो बैलों की हुंकार व गले में बंधी घंटियां बजती थीं। ऐसा प्रतीत होता था कि मानो कोई संगीत के स्वर छेड़ रहा हो। आज काश्तकारों के घर बैलों के बिना सूने नजर आने लगे हैं।मशीनरी ने छीनी बैलों की रौनक
ग्रामीण क्षेत्रों में खेत जोतने की सीजन शुरू होते ही किसान बेलों को लेकर खेतों में जाया करते थे। बुजुर्ग बताते है कि जब बैलों के साथ चला करते उनके गले में घंटी व छन-छन की आवाज मन को आनन्दीत करतीं थी।अब कुछ गांवों में बची हैं जोडियां
बुजुर्ग बताते हैं कि पहले गांवों में बड़ी तादाद में बैलों की जोडियां नजर आया करती थीं। अब न केवल सम्पन्न बल्कि आम किसानों ने भी बैलों को पूरी तरह से त्याग दिया है। जिन लोगों के पास सिंचाई के आधुनिक यंत्र नहीं है, उन्होंने भी किराए पर इनका जुगाड़ कर समय की बचत की बात कहकर बैलों की जोडियों से अपना मुंह मोड़ा ।बैलों की बीमा एवं स्वास्थ्य प्रमाण पत्र जरूरी
राजस्थान सरकार ने प्रदेश के लघु व सीमान्त कृषकों को बैलों से खेती करने के लिए प्रोत्साहन स्वरूप 30 हजार रुपए प्रति वर्ष देने की घोषणा की है। ऐसे में किसान फिर से खेतों में बैलों से भूमि की जुताई करते नजर आएंगे। इसके लिए बैलों की बीमा (टैगिंग) एवं स्वास्थ्य प्रमाण पत्र जारी कर आवेदन करना होगा।रामप्रकाश बेड़ा, सहायक निदेशक , कृषि विस्तार मेड़ता