अजीत पुरोहित अजमरे/श्रीनगर। कस्बे से मात्र 5 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत फारकिया का ग्राम हाथीपट्टा ऐसा अनोखा गांव है, जहां कभी पशुओं का दूध नहीं बेचा जाता। ग्रामीण अपने पुराने रीति-रिवाजों को आज भी कायम रखकर गांव की अलग पहचान बनाए हुए है। यहां लोग दूध का व्यापार नहीं करते बल्कि घरों में पाली जाने वाली गाय भैंसों से मिलने वाले दूध का उपयोग अपने परिवार के लिए ही करते हैं।
बताया जाता है कि अजयनाथ बाबा के वचन को ग्रामीण निभा रहे हैं। यहां मंदिर में 24 घंटे धूणी जलती है। दूध बेचने के बजाय ग्रामीण उससे घी बना लेते हैं और उसे बेच देते हैं। गांव के मोहनलाल मेघवंशी बताते हैं कि अरांई के हीरापुरा से अजय नाथ महाराज हाथीपट्टा आए थे।
परिसर में स्थापित अजय नाथ बाबा की मूर्ति, Photo- Patrika उस वक्त अंग्रेजों का शासन था। यहां उन्होंने हिंगलाज माता का मंदिर बनवाया। बाबा इसी मंदिर के पास समाधि लेना चाहते थे, लेकिन ग्रामीणों ने उन्हें रोक दिया। इस पर उन्होंने थावला के पास रातीनाडा में जीवित समाधि ली। गांव का प्रत्येक परिवार अजयनाथ बाबा के वचन की पालना कर रहा है।
बताया जाता है कि यहां पालरा गांव से रावत जाति के नणैत गोत्र के कुछ लोगों ने आकर गांव बसाया। हाथी पट्टा के ग्रामीण आज भी पालरा गांव से भाईपा (भाईचारा) निभाते हैं। पालरा गांव से बेटी की शादी नहीं करते हैं।
ग्रामीण आज भी अपनी पुरानी मान्यताओं एवं रीति रिवाज को अपनाए हुए हैं। न्याय की प्रतीक गांव की हथाई का ग्रामीण आज भी आदर करते हैं। ग्रामीण मान्यताओं के चलते गांव की हथाई के सामने से मोटरसाइकिल चलाकर नहीं ले जाते, बल्कि हथाई के सामने मोटरसाइकिल से उतर जाते हैं।
गांव में ठाकुरजी के मंदिर के आगे एक बड़ी चट्टान है, जिसे लोग गणेशजी के रूप में पूजा-अर्चना करते हैं। हाथी जैसे आकार की चट्टान होने के कारण ही गांव का नाम हाथी पट्टा पड़ा। शादी होने पर पहला निमंत्रण इसी चट्टान के पास जाकर गणेशजी को दिया जाता है। गांव की हथाई पर लोग आज भी बैठे नजर आते हैं।
हथाई के पास एक बड़ा सा पुराना चट्टान नंबर पत्थर रखा है, जिसे ग्रामीण अणघण महाराज मानकर पूजा-अर्चना करते हैं। गांव की हथाई के सामने एक लोहे का बड़ा कड़ाव पड़ा है। ग्रामीण बताते हैं कि इस कड़ाव में एक बार में सवा सात मण लापसी बनाई जा सकती है।