छत्तीसगढ़ में होती है “डायन माई” की पूजा, जानिए इस रहस्यमय मंदिर की मान्यताएं…
Mysterious Dayan Temple in CG: बालोद जिले के झींका गांव में स्थित “डायन माई” या “परेतिन दाई” का मंदिर स्थानीय आस्था और लोकपरंपरा का एक अनोखा उदाहरण है।
छत्तीसगढ़ में होती है “डायन माई” की पूजा(photo-patrika)
Mysterious Dayan Temple: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के झींका गांव में स्थित “डायन माई” या “परेतिन दाई” का मंदिर स्थानीय आस्था और लोकपरंपरा का एक अनोखा उदाहरण है। यह मंदिर एक ऐसी महिला को समर्पित है, जिसे पहले डायन (चुड़ैल) माना जाता था, लेकिन कालांतर में ग्रामीणों ने उसे देवी का रूप मानकर पूजना शुरू कर दिया।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह महिला असमय मृत्यु का शिकार हुई थी और उसकी आत्मा गांव में भय फैलाने लगी थी। बाद में गांववालों ने उसकी आत्मा की शांति के लिए पूजा-अर्चना शुरू की, जिससे घटनाएं थम गईं। तभी से लोग उसे “परेतिन दाई” के रूप में पूजने लगे। आज भी यहां लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और मन्नतें पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाते हैं। यह मंदिर स्थानीय संस्कृति और लोकविश्वास का अद्भुत प्रतीक बन गया है, जहां डर और श्रद्धा एक साथ नजर आते हैं।
Mysterious Dayan Temple: डायन माई की पूजा एक अनोखी लोक परंपरा
बालोद जिले के झींका गांव में स्थित “डायन माई” या “परेतिन दाई” (Mysterious Dayan Temple in CG) की पूजा एक अनोखी लोक परंपरा है, जहां आम तौर पर नकारात्मक मानी जाने वाली आत्मा को देवी का दर्जा देकर पूजा जाता है। यहां ग्रामीण “डायन माई” या “परेतिन दाई” को शांत और कृपालु रूप में मानते हैं, जिनकी कृपा से गांव में सुख-शांति बनी रहती है।
लोग यहां नारियल, चुनरी, अगरबत्ती, नींबू आदि चढ़ाकर पूजा करते हैं और मन्नतें मांगते हैं। मान्यता है कि “परेतिन दाई” मनोकामनाएं पूरी करती हैं और संकट से बचाती हैं। इस पूजा में डर और श्रद्धा दोनों का अनोखा संगम देखने को मिलता है। यह आस्था स्थानीय लोकविश्वास और संस्कृति की गहराई को दर्शाती है, जिसमें नकारात्मक को भी सकारात्मक रूप देकर अपनाया जाता है।
जानें इस मंदिर की मान्यता
डायन माई की मान्यता एक लोकआस्था पर आधारित है। मान्यता है कि गांव में किसी समय एक महिला की असमय और रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गई थी। इसके बाद गांव में अजीब घटनाएं होने लगीं, जिससे लोग डरने लगे और मान लिया गया कि उस महिला की आत्मा गांव में भटक रही है।
स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, आत्मा को शांत करने के लिए गांववालों ने पूजा-पाठ शुरू किया और धीरे-धीरे उस आत्मा को “परेतिन दाई” के रूप में देवी का दर्जा दे दिया गया। तब से यह मान्यता बनी कि यदि “डायन माई” की पूजा श्रद्धा से की जाए तो वह प्रसन्न होती हैं, मनोकामनाएं पूरी करती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
आज यह स्थल श्रद्धा और भय का मिला-जुला प्रतीक बन चुका है, जहां लोग हर साल मन्नतें लेकर पहुंचते हैं, विशेष रूप से महिलाएं और ग्रामीण समुदाय। यह मान्यता लोक परंपरा का एक अद्भुत उदाहरण है, जहां भय को श्रद्धा में बदल दिया गया है।
“डायन माई” या “परेतिन दाई” की चढ़ावा
झींका गांव में स्थित “डायन माई” (Dayan Temple) या “परेतिन दाई” के मंदिर में भक्त विशेष तरह का चढ़ावा चढ़ाते हैं, जो लोक परंपरा और मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। यहां नारियल, नींबू, सिंदूर, चुनरी, अगरबत्ती, फूल-माला और चूड़ियां चढ़ाना आम है। कुछ श्रद्धालु विशेष रूप से काली चुनरी या लाल रंग की साड़ी भी अर्पित करते हैं, जो “परेतिन दाई” के स्वरूप को शांत और प्रसन्न करने का प्रतीक माना जाता है।
इसके अलावा, मन्नतें पूरी होने पर कुछ लोग मनोकामना पूर्ति के रूप में विशेष भोग, मिठाई या दीपक जलाकर चढ़ाते हैं। ग्रामीण महिलाएं अपने बच्चों की सलामती और परिवार की सुरक्षा के लिए यहां पूजा करती हैं और घर में सुख-शांति की कामना करती हैं। यह चढ़ावा श्रद्धा के साथ भय और लोक आस्था का मिश्रण है, जो इस पूजा को विशिष्ट बनाता है।
“डायन माई” का निर्माण
झींका गांव में स्थित “डायन माई” या “परेतिन दाई” का स्थल किसी भव्य मंदिर के रूप में नहीं, बल्कि एक लोक-आस्था आधारित देवस्थल के रूप में विकसित हुआ है। इसका निर्माण ग्रामीणों की मान्यता और सामूहिक प्रयासों का परिणाम है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, जब गांव में एक महिला की रहस्यमय मृत्यु के बाद अजीब घटनाएं होने लगीं, तो डर और परेशानी से परेशान होकर गांववालों ने उस स्थान पर एक छोटा सा चबूतरा (वेदी) बनाया और पूजा-पाठ शुरू किया। शुरुआत में यह केवल एक प्रतीकात्मक स्थान था, लेकिन समय के साथ श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी और स्थान को एक स्थायी रूप देने की आवश्यकता महसूस हुई।
इसके बाद ग्रामीणों ने मिलकर वहां एक साधारण मंदिरनुमा संरचना तैयार की, जिसमें अब “परेतिन दाई” की प्रतीकात्मक मूर्ति या प्रतीक रखे गए हैं। मंदिर में नियमित पूजा नहीं होती, बल्कि विशेष अवसरों और मन्नतों के समय ही पूजा की जाती है। यह निर्माण न तो शास्त्रीय मंदिर शैली में है और न ही पुरातात्विक दृष्टि से विशिष्ट, लेकिन लोक आस्था में इसकी गहरी जड़ें हैं, जो इसे एक अद्वितीय धार्मिक स्थल बनाती हैं।
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