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अवैध खनन मामला : 23 वन अधिकारियों को गवाह के बजाय आरोपी मानने के आवेदन पर विचार करें

अदालत ने कहा, कोई व्यक्ति अभियोजन पक्ष के गवाह की स्थिति में नहीं हो सकता है यदि वह पार्टिसेप्स क्रिमिनिस (जो किसी अपराध में शामिल है)। न्यायाधीश एम. नागप्रसन्ना ने मामले में आरोपी नंबर चार, एस. मुथैया (68) द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया।

बैंगलोरFeb 11, 2025 / 10:24 pm

Sanjay Kumar Kareer

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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दिया विशेष अदालत को निर्देश

बेंगलूरु. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने विशेष अदालत को एक सेवानिवृत्त उप वन संरक्षक द्वारा दायर आवेदन पर एक नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया है, जो पूर्व मंत्री जी. जनार्दन रेड्डी से जुड़े अवैध खनन मामले में आरोपी हैं।
आवेदन में कहा गया है कि 23 अन्य वन अधिकारियों को अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में जांच करने के बजाय आरोपी माना जाए। अदालत ने कहा, कोई व्यक्ति अभियोजन पक्ष के गवाह की स्थिति में नहीं हो सकता है यदि वह पार्टिसेप्स क्रिमिनिस (जो किसी अपराध में शामिल है)। न्यायाधीश एम. नागप्रसन्ना ने मामले में आरोपी नंबर चार, एस. मुथैया (68) द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया।
याचिकाकर्ता ने विशेष अदालत के 6 जनवरी, 2025 के आदेश पर सवाल उठाया था, जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 का हवाला देकर वन विभाग के 23 अधिकारियों को आरोपी मानने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि अपना अपराध स्वीकार करने वाले 23 अधिकारियों को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और विशेष अदालत दोनों द्वारा गवाह नहीं माना जा सकता।
इस बीच, उच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि 23 अधिकारियों ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत सीबीआई को अपने बयान दिए थे और बाद में मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपना स्वैच्छिक बयान दर्ज किया था, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया था कि उन्होंने खाली वन परमिट पर हस्ताक्षर किए और उन्हें आरोपियों को सौंप दिया था और उन परमिटों का इस्तेमाल आरोपियों द्वारा अवैध रूप से लौह अयस्क के परिवहन के लिए किया गया था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में उद्धृत किए गए 23 अधिकारियों में से प्रत्येक द्वारा हस्ताक्षरित परमिट में, लकड़ी के प्रकार या वन उपज के विवरण का उल्लेख करने के लिए कॉलम खाली छोड़ दिया गया था, साथ ही उस व्यक्ति का नाम लिखने के लिए स्थान भी खाली छोड़ दिया गया था, जिसके पक्ष में परमिट जारी किया गया था। याचिकाकर्ता के खिलाफ एक आरोप अन्य आरोपियों के पक्ष में इसी तरह के खाली परमिट जारी करने का भी है।

विशेष अदालत ने खुद को गलत दिशा दिखाई

यह देखते हुए कि विशेष अदालत ने खुद को गलत दिशा में निर्देशित किया है, उच्च न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में, 23 अधिकारी गवाह हैं, जो अपराध में भागीदार हैं क्योंकि उन्होंने कुछ हद तक अपराध स्वीकार किया है कि उन्होंने खाली परमिटों को अलग कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि यदि वे खाली दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करना स्वीकार करते हैं, तो वे अन्य आरोपियों के साथ सह-अपराधी बन जाते हैं जिन पर कुछ अपराधों के लिए आरोप लगाया जा सकता है। इसलिए, यह बुनियादी बात है कि कोई अभियुक्त अभियोजन पक्ष की ओर से गवाह नहीं हो सकता है और कोई व्यक्ति जो निस्संदेह दोषी है, केवल इसलिए सजा से नहीं भाग सकता है क्योंकि उसे गवाह के रूप में खड़ा किया गया है।उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता का आवेदन विशेष अदालत द्वारा विचार किए जाने योग्य है।

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