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बरेली

सिंदूर की लाज और सेवा की मिसाल: 5 साल बाद मानसिक चिकित्सालय से मिला सुहाग, छलक पड़े भावनाओं के आंसू

मानसिक बीमारी के अंधेरे में गुम हो चुके एक युवक को वर्षों बाद नया जीवन मिला है। पुलिस, समाजसेवियों और पत्नी के अटूट विश्वास ने उसे फिर से उसके परिवार से मिलवा दिया। पांच वर्षों से लापता मानसिक रोगी को पुलिस और मनोसमर्पण सेवा संस्थान की टीम ने पहचान दिलाई और न्यायालय के आदेश के बाद उसे उसकी पत्नी के सुपुर्द कर दिया।

बरेलीJun 08, 2025 / 09:25 pm

Avanish Pandey

परिवार के साथ रविंद्र (फोटो सोर्स: पत्रिका)

बरेली। मानसिक बीमारी के अंधेरे में गुम हो चुके एक युवक को वर्षों बाद नया जीवन मिला है। पुलिस, समाजसेवियों और पत्नी के अटूट विश्वास ने उसे फिर से उसके परिवार से मिलवा दिया। पांच वर्षों से लापता मानसिक रोगी को पुलिस और मनोसमर्पण सेवा संस्थान की टीम ने पहचान दिलाई और न्यायालय के आदेश के बाद उसे उसकी पत्नी के सुपुर्द कर दिया।
बिथरी चैनपुर क्षेत्र में कुछ समय पहले एक मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति सड़क पर भटकता मिला था। कपड़े मैले, चेहरा गुमसुम और जुबान पर अपना नाम तक नहीं। मौके पर पहुंची डायल-112 पुलिस और मनोसमर्पण सेवा संस्थान की टीम ने मानवता की मिसाल पेश करते हुए उसे रेस्क्यू किया और मानसिक चिकित्सालय में भर्ती कराया।

करीब एक वर्ष तक चला उपचार, लौटने लगी स्मृतियां

मानसिक चिकित्सालय बरेली में उसका इलाज शुरू हुआ। महीनों की दवाओं और चिकित्सकों की मेहनत रंग लाई। जब हालत में थोड़ा सुधार हुआ, तो मनोवैज्ञानिक शैलेश शर्मा ने नियमित काउंसलिंग शुरू की। बातचीत के दौरान युवक ने अपना नाम रविंद्र (परिवर्तित नाम) बताया और अपने गांव का पता भी याद आया। संस्थान की टीम रविंद्र के बताए पते पर कुशीनगर जिले के एक गांव पहुंची, तो चौंकाने वाली बात सामने आई। गांव वालों ने बताया कि उसकी पत्नी ने पांच वर्षों तक पति की राह देखी, तमाम ताने और समाज के दबाव के बावजूद उसने सिंदूर नहीं छोड़ा। कुछ लोग उसे कहते रहे कि “अब वह नहीं लौटेगा, मांग का सिंदूर मिटा दे”, लेकिन महिला ने अपने सुहाग पर विश्वास बनाए रखा।

पुनर्मिलन ने छलकाए भावनाओं के आंसू

मानसिक चिकित्सालय परिसर में जब पत्नी ने पति को देखा, तो आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी। महिला ने भावुक होकर कहा मैंने कभी अपना सिंदूर नहीं मिटाया, भगवान ने मेरी सुन ली। अब जीवन भर इसी नाम का सिंदूर लगाऊंगी। सभी विधिक औपचारिकताएं पूरी करने के बाद मानसिक चिकित्सालय की निदेशक डॉ. पुष्पा पंत त्रिपाठी और वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. आलोक शुक्ला ने रविंद्र को उसकी पत्नी के हवाले कर दिया। मनोसमर्पण सेवा संस्थान के संस्थापक मनोवैज्ञानिक शैलेश शर्मा ने कहा कि समाज में मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। यदि समय रहते इलाज और सही देखभाल मिल जाए तो वे भी सामान्य जीवन में लौट सकते हैं।

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