बसंतर की लड़ाई 1971 में लेफ्टिनेंट जनरल हणूत ने लड़ी थी। इस लड़ाई में पाकिस्तान की टैंक रेजिमेंट भारत के सामने थी। जम्मू पंजाब के शकरगढ़ सेक्टर में दोनों देशों के बीच टैंक युद्ध हुआ। भारत की तरफ से 17 पूना हॉर्स को लेफ्टिनेंट कर्नल हणूत सिंह कमांड कर रहे थे।
पाकिस्तानी फौज ने इस इलाके में लैंड माइन्स बिछाई हुई थी। माइंस को हटाने की जिम्मेदारी इंजीनियर कोर की थी, जो अभी आधी ही माइंस हटा पाई थी। इधर, पता चला कि पाकिस्तान अपने टैंक लेकर आगे बढ़ रहा है। 15 दिसंबर 1971 को रात ढाई बजे कमांडिंग ऑफिसर हणूत ने तय किया कि अगर माइंस हटाने इंतजार किया तो बहुत देर हो जाएगी। जनरल हणूत ने खतरा मोल लेते हुए आगे बढ़ना तय किया। 17 पूना हॉर्स के सारे टैंक बिना किसी नुकसान रास्ता पार कर गए।
महावीर चक्र मिला था
पाकिस्तान के सबसे एलीट 1 स्क्वॉड्रन से टक्कर ली। एक-एक कर पाकिस्तान के 48 टैंक को नेस्तनाबूद कर दिया। इस युद्ध में लेफ्टिनेंट अरुण क्षेत्रपाल शहीद हुए। जिन्हें परम वीर चक्र से नवाजा गया था। हणूत सिंह को भी इस जंग में अदम्य साहस दिखाने के लिए महावीर चक्र दिया गया। लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह 39 साल की सेना की सेवा के बाद 1991 में सेवानिवृत्त हुए। 2015 में 10 अप्रेल को निधन हुआ।
घर के आगे टैंक
पूना रेजिमेंट अपने जनरल का बहुत सम्मान करती थी। उनके निधन के बाद में 2019 में उनके पैतृक निवास जसोल के आगे एक टैंक लाकर स्थापित किया गया है। किसी फौजी अफसर के घर के आगे टैंक रखने का यह अद्वितीय उदाहरण है। जनरल हणूत हमारे लिए गौरव है। इतना बड़ा योद्धा हमारे गांव ने दिया है। वे जसवंतसिंह जसोल के भाई थे, जो हमारे रक्षामंत्री भी रहे हैं। 1971 के युद्ध में जनरल हणूत और 1999 की कारगिल लड़ाई में जसवंतसिंह की भूमिका अहम रही है।
ईश्वरसिंह जसोल, सरपंच भारत में तो जनरल हणूत का नाम लिया ही जाता है, पाकिस्तान में भी आज भी सेना उनके नाम को 1971 के युद्ध की लड़ाई से जोडक़र कहती है तो फक्र ए हिन्द बोलती है। यहां उनके घर के आगे टैंक का होना ही इसका सबूत है कि वे कितनी बड़ी शख्सियत रहे हैं।
छगनलाल प्रजापत, जसोल हम जोश से भरे हुए हैं। पाकिस्तान को छठी का दूध याद दिलाने वाला हमारे गांव के ही जनरल हणूत थे, जिनका नाम हम फक्र से लेते हैं। पाकिस्तान भी उन्हें फक्र ए हिन्द कहता था। हमारी फौज में ऐसे कई वीर है जो छक्के छुड़ा देंगे।
भगवतसिंह जसोल, प्रधान