scriptऊंटों का काफिला लेकर 1971 के युद्ध में गए थे दादा, अब युद्ध जैसे हालात के बीच पोते भी सेना का साथ देने को तैयार | India Vs Pakistan War spirit of patriotism surged again in war-like conditions | Patrika News
बाड़मेर

ऊंटों का काफिला लेकर 1971 के युद्ध में गए थे दादा, अब युद्ध जैसे हालात के बीच पोते भी सेना का साथ देने को तैयार

India Vs Pakistan War: सरहदी क्षेत्र के लोगों के जहन में अब भी 1965 और 1971 के युद्धों की स्मृतियां ताज़ा हैं। इन युद्धों में सीमावर्ती गांवों के नागरिकों ने सेना के साथ मिलकर अद्भुत साहस और सहयोग का परिचय दिया था।

बाड़मेरMay 09, 2025 / 09:24 am

Anil Prajapat

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दौलत शर्मा
चौहटन। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देशभर में आक्रोश की लहर है, और सरहदी जिले बाड़मेर के कस्बों और गांवों में हालात को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। वायुसेना की ओर से मंगलवार रात की एयर स्ट्राइक और बुधवार को हुई मॉक ड्रिल के बाद सीमांत इलाकों में लोग और अधिक सतर्क हो गए हैं।
सरहदी क्षेत्र के लोगों के जहन में अब भी 1965 और 1971 के युद्धों की स्मृतियां ताज़ा हैं। इन युद्धों में सीमावर्ती गांवों के नागरिकों ने सेना के साथ मिलकर अद्भुत साहस और सहयोग का परिचय दिया था। आज जब हालात फिर तनावपूर्ण हैं, तब वही जज़्बा और देशभक्ति की भावना फिर से सिर उठाती दिख रही है।
लोगों का कहना है कि बार-बार पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ, हथियार और नशे की तस्करी तथा आतंकवाद की घटनाओं को अब और बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए।

अगर युद्ध हुआ, तो हम भी मोर्चे पर होंगे

1971 के युद्ध में सेना के साथ रहे चौहटन के ग्रामीणों ने पुराने अनुभवों को साझा करते हुए मौजूदा हालात में भी सहयोग का भरोसा जताया। लादूराम ढाका निवासी चौहटन आगौर बताते हैं कि हम करीब तीस लोग अपने ऊंटों के साथ सेना के लिए राशन, पानी और बारूद पहुंचाते थे।
हम नाला धोला परछे की बेरी तक सेना के साथ 85 किलोमीटर भीतर तक गए। लादूराम जाणी निवासी ऊपरला चौहटन ने कहा कि 1971 में बमबारी के बाद 4 दिसंबर को जिला कलक्टर के कहने पर हम सेना से जुड़े। 13 महीने तक हम सेना के साथ एक ही कैंप में रहे। अब लड़ाई फाइटर जेट और मिसाइलों की है, पर ज़मीन पर स्थानीय सहयोग की अहमियत अब भी उतनी ही बनी हुई है।
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नई पीढ़ी भी तैयार

पुराने जांबाजों की अगली पीढ़ी भी सेना का साथ देने को आतुर है। लादूराम ढाका के पोते भंवरलाल ढाका ने कहा कि मेरे दादा 1971 में गए थे, अब यदि मौका मिले तो मैं भी सीमा पर जाकर सेना की मदद करूंगा। मोबताराम जांगू के पोते पांचाराम जांगू ने कहा कि दादाजी अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके सपने को जिंदा रखने के लिए मैं भी तैयार हूं।

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