रोज़े का सलीका है सब्र, संयम और सदाचार। रोज़े का तरीका है तौहीद, ईमानदारी और मधुर व्यवहार। इस सलीके और तरीके से जब रोज़ा रखा जाता है तो रोज़ा खुद रोज़ेदार की हिफाज़त करता है। रोज़े की हिफाज़त करो, रोज़ा तुम्हारी हिफाज़त करेगा। इसका मतलब ये हुआ कि रोज़ा रखने के दौरान बुराइयों से बचें तो रोज़ा ऐसी रूहानी ताकत (आध्यात्मिक शक्ति) बन जाएगा कि, वो खुद-ब-खुद रोज़ेदार को बुराइयों से बचाकर हिफाज़त करेगा।
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खुलासा यह है कि, हफीज़ (रक्षित), हाफिज़ (रक्षक) हो जाएगा। मतलब ये हुआ कि, रोज़े की इज्जत करो, रोज़ा तुम्हारी इज्जत करेगा। सलीके और तरीके से रखा गया रोज़ा तुम्हारी इज्जत करेगा। सलीके और तरीके से रखा गया रोज़ा ‘बुलेटप्रूफ’ की तरह है, जो बुराइयों के ‘बुलेट’ से हिफाज़त करता है।
रोज़ा बुराई से बचने की ‘ट्रेनिंग’ है
रोज़ा अल्लाह से रोज़ेदार की मगफिरत (मोक्ष) के लिए सिफारिश भी करता है। यहां ये बात समझना जरूरी है कि, सिर्फ रोज़े के दौरान ही नहीं, बल्कि हर दिन हर पल बुराई से बचना चाहिए। रोज़ा बुराई से बचने की ‘ट्रेनिंग’ है, जिस पर जिंदगी भर अमल करना चाहिए। पवित्र कुरआन में जिक्र है, ‘ईमान पर रहो और नेक अमल करो।’