पिछली सुनवाई में कोर्ट ने जताई थी नाराजगी
पिछली सुनवाई के दौरान राज्य शासन ने शपथ पत्र के माध्यम से जानकारी दी थी कि वर्ष 2014 से पहले के मेडिकल रिकॉर्ड काफी पुराने होने के कारण प्रतिदिन केवल 3,000 पृष्ठों को ही स्कैन किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में अनुमानित 550 दिन लगने की संभावना थी। इस पर हाई कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था कि निर्धारित कार्यों को पूरा करने के प्रति संबंधित विभाग गंभीर नहीं है। इसके साथ ही स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव और बीएमएचआरसी के निदेशक को एक सप्ताह के भीतर संयुक्त बैठक कर डिजिटाइजेशन की अंतिम कार्य योजना तैयार करने के निर्देश दिए गए थे। यह भी पढ़ें- एमपी को एक और एयरपोर्ट की सौगात, PM मोदी 24 फरवरी को करेंगे इनॉगरेशन यह है मामला
कोर्ट मित्र अधिवक्ता अंशुमान सिंह के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2012 में भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन सहित अन्य याचिकाओं की सुनवाई करते हुए गैस पीडि़तों के उपचार और पुनर्वास के लिए 20 निर्देश जारी किए थे। इन निर्देशों को लागू करने के लिए एक मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया गया था, जिसे प्रत्येक तीन महीने में अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश करनी थी। इस रिपोर्ट के आधार पर हाई कोर्ट केंद्र और राज्य सरकार को आवश्यक निर्देश जारी करता। हालांकि, याचिका के लंबित रहने के दौरान मॉनिटरिंग कमेटी की सिफारिशों को अमल में नहीं लाने के चलते वर्ष 2015 में अवमानना याचिका दायर की गई थी।