ये भी पढें – कांग्रेस में बड़ा फेरबदल, 11 प्रदेशों में बदले प्रभारी, हरीश चौधरी को एमपी की कमान संविधान पीठ की संगठन संबंधी चिंताओं को उजागर करते हुए धनखड़ ने कहा, जब मैं 1990 में संसदीय कार्य मंत्री बना था, तब 8 न्यायाधीश थे। अक्सर ऐसा होता था कि सभी 8 न्यायाधीश साथ बैठते थे। अनुच्छेद 145(3) के तहत यह प्रावधान था कि संविधान की व्याख्या 5 न्यायाधीशों या अधिक की पीठ द्वारा की जाएगी। जब यह संख्या आठ थी, तब यह पांच थी और संविधान देश की सर्वोच्च अदालत को संविधान की व्याख्या करने की अनुमति देता है।
संविधान के बारे में संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 145(3) के तहत जो सार और भावना मन में रखी थी, उसका सम्मान किया जाना चाहिए। यदि गणितीय दृष्टिकोण से विश्लेषण किया जाए तो वे बहुत सुनिश्चित थे कि व्याख्या न्यायाधीशों के बहुमत द्वारा की जाएगी, क्योंकि तब संख्या 8 थी। वह पांच आज भी वैसी की वैसी है। और संख्या अब चार गुना से भी अधिक है।
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धनखड़(Jagdeep Dhankhar) ने यह भी कहा कि न्यायपालिका की सार्वजनिक उपस्थिति मुख्य रूप से निर्णयों के माध्यम से होनी चाहिए। निर्णय अपने आप में बोलते हैं। निर्णयों का वजन होता है। यदि निर्णय देश के उच्चतम न्यायालय से आता है तो यह एक बंधनकारी निर्णय होता है। निर्णयों के अलावा कोई अन्य प्रकार की अभिव्यक्ति संस्थागत गरिमा को अनिवार्य रूप से कमजोर करती है। फिर भी जितना भी प्रभावी हो सकता है, मैंने संयम का प्रयोग किया है।
ये भी पढें – कूनो में चीतों के कुनबे में होगा इजाफा, दक्षिण अफ्रीका से आएंगे 10 चीते वर्तमान स्थिति की पुन: समीक्षा करने की मांग करता हूं ताकि हम फिर उस ढंग में लौट सकें, जो हमारे न्यायपालिका को ऊंचाई दे सके। जब हम पूरी दुनिया में देखते हैं तो हम कभी भी न्यायाधीशों को उस तरह से नहीं पाते जैसे हम यहां हर मुद्दे पर पाते हैं। कार्यक्रम को संबोेधित करते धनकड़ और मौजूद सीएस अनुराग जैन, बीयू कुलपति एस.के. जैन और अन्य।
संस्थाएं राष्ट्र हित देखकर सीमा में काम करें
धनखड़(Jagdeep Dhankhar) बोले-न्यायिक आदेश द्वारा कार्यकारी शासन संवैधानिक विरोधाभास है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और बर्दाश्त नहीं कर सकता। संविधान में सामंजस्य बिठाने की परिकल्पना है। संस्थागत समन्वय के बिना परामर्श प्रतीकवाद है। न्यायालयीय सम्मान के लिए जरूरी है कि संस्थाएं राष्ट्रहित ध्यान में रखकर संवाद बनाते हुए संवैधानिक सीमाओं में काम करें। सरकारें विधायिका के प्रति उत्तरदायी हैं पर यदि कार्यकारी शासन अधिकार या आउटसोर्स होता है तो जवाबदेही की प्रवर्तन क्षमता नहीं होगी।