scriptबजट लैप्स होने के डर से सरकारी महकमों में पनप रहा भ्रष्टाचार, वित्त वर्ष के अंतिम दिनों में फाइलों को लग जाते हैं पंख | Corruption is flourishing in government departments due to fear of budget lapse, | Patrika News
बीकानेर

बजट लैप्स होने के डर से सरकारी महकमों में पनप रहा भ्रष्टाचार, वित्त वर्ष के अंतिम दिनों में फाइलों को लग जाते हैं पंख

वित्तीय वर्ष की समाप्ति के नजदीक आने के साथ ही विभागों में बजट खपाने की जो कवायद चलती है, वह चिंतनीय है।

बीकानेरApr 01, 2025 / 08:35 pm

Brijesh Singh

वित्तीय वर्ष बीतते-बीतते बजट खपाने की होड़ सरकारी महकमों में कोई नई बात नहीं है। इस वित्तीय वर्ष में भी राजस्थान के कई विभागों में बजट लैप्स होने के डर से सरकारी खरीद की फाइलों के ऐसे पंख लगे हैं कि खरीदी जाने वाली सामग्री की गुणवत्ता का भी ध्यान नहीं रखा। शिक्षा विभाग में खरीदे गए खेल उपकरण इसका ताजा उदाहरण हैं। विभाग ने मार्च के पहले सप्ताह से अंतिम तीन दिनों में अलग-अलग योजनाओं, सरकारी स्कूलों की विभिन्न ग्रांट, खेलकूद के सामान यहां तक की स्कूल बैग और ड्रेस के बजट पेटेकरोड़ों रुपए की राशि जारी की। राशि स्कूलों में रातों-रात हस्तांतरित करने के साथ उसे 31 मार्च से पहले खर्च कर ऑनलाइन पोर्टल पर हिसाब मांगा गया। जाहिर है बजट लैप्स होने के डर से तलवार भी लटका दी थी। इसलिए खरीद में भी मनमर्जी हुई।
स्पोर्ट्स ग्रांट को ही ले लीजिए। सरकारी स्कूलों को बीस हजार स्पोर्ट्स किट देने के लिए मार्च में फर्म को टेंडर दिया गया। फर्म को 15 दिन से कम समय में स्पोर्ट्स किट तैयार कर, उस पर शिक्षा विभाग के लोगो तक प्रिंट कर प्रदेशभर में दूर-दराज की स्कूल तक पहुंचाकर प्राप्ति रसीद तक लेनी थी। नतीजतन फर्म ने स्पोर्ट्स किट तो स्कूलों तक पहुुंचा दी, लेकिन उसमें दोयम दर्जे की गुणवत्ता वाला सामान निकला। इस खेल का खुलासा होता, इससे पहले वित्तीय वर्ष समाप्ति के दबाव में फर्म भुगतान भी उठा ले गई।
यह तो कोरी बानगी है। गत दिसम्बर में सरकारी स्कूलों में वार्षिकोत्सव के आयोजन के लिए पांच और दस हजार रुपए खर्च करने की स्वीकृति दी गई। संस्था प्रधानों ने अपनी जेब से खर्चा कर बिल आदि इस उम्मीद से संभाल कर रखे कि सप्ताह-दस दिन में विभाग से भुगतान मिल जाएगा। परन्तु वित्तीय वर्ष के तीन-चार दिन पहले शिक्षा विभाग ने पचास फीसदी राशि का भुगतान किया है। वित्तीय वर्ष 31 मार्च को समाप्त हो जाएगा, ऐसे में शेष 50 प्रतिशत राशि का क्या होगा, किसी के पास जवाब नहीं है।
सरकारी स्कूलों में विद्यार्थी सालभर बिना स्कूल पोशाक और स्कूल बैग की जगह कपड़े के थैले में किताबें डालकर स्कूल आते रहे। चाहिए तो यह था कि स्कूल खुलने के सप्ताहभर में स्कूल ड्रेस, किताबें, बैग और नोटबुक विद्यार्थी को दी जाती। परंतु बच्चे इससे वंचित रहे। परन्तु शिक्षा सत्र समाप्त होने से ठीक पहले 800-800 रुपए प्रति विद्यार्थी के हिसाब से करोड़ों रुपए का बजट जारी किया गया है। इन सब प्रयासों से भ्रष्टाचार की बू आती है। न केवल शिक्षा विभाग, बल्कि तमाम महकमों में ऐसी जल्दबाजी की जांच होनी चाहिए।

Hindi News / Bikaner / बजट लैप्स होने के डर से सरकारी महकमों में पनप रहा भ्रष्टाचार, वित्त वर्ष के अंतिम दिनों में फाइलों को लग जाते हैं पंख

ट्रेंडिंग वीडियो