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बीकानेर

खेती से डेयरी तक…गांवों में बह रही रोजगार की नई धार, जुट रहा परिवार

बज्जू, लूणकरनसर, सुरनाणा, खाजूवाला, छतरगढ़ जैसे क्षेत्रों में अब किसान दूध उत्पादन के माध्यम से अच्छी आमदनी कर रहे हैं।

बीकानेरJun 30, 2025 / 08:58 pm

Atul Acharya

बीकानेर जिले के ग्रामीण इलाकों में अब केवल खेती ही नहीं, बल्कि डेयरी उद्योग भी बड़ी तेज़ी से पांव पसार रहा है। बज्जू, लूणकरनसर, सुरनाणा, खाजूवाला, छतरगढ़ जैसे क्षेत्रों में अब किसान दूध उत्पादन के माध्यम से अच्छी आमदनी कर रहे हैं। इस क्षेत्र में न केवल पुरुष, बल्कि महिलाएं और युवा भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। सुबह से शाम तक पूरा परिवार इस काम में जुटा रहता है। डेयरी अब समानजनक, आत्मनिर्भर और लाभदायक आजीविका के रूप में उभर रही है। साथ ही ग्रामीण अर्थतंत्र को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
प्रशिक्षण से बदल रही तकदीर और तस्वीर
सुरनाणा गांव के गोपालराम भुंवाल ने पशुपालन को वैज्ञानिक तरीके से अपनाकर युवाओं के लिए एक मिसाल कायम की है। उन्होंने पशु विज्ञान केंद्र और आत्मा योजना के तहत प्रशिक्षण प्राप्त कर राठी व साहिवाल नस्ल की गायों से प्रतिदिन 150-160 लीटर दूध का उत्पादन शुरू किया। गोपालराम के पास 3 हेक्टेयर सिंचित और 20 हेक्टेयर असिंचित भूमि भी है। इस व्यवसाय से उन्हें सालाना 7-8 लाख रुपए तक की आय होती है। उन्हें राज्य स्तरीय पशुपालक समान समारोह में जिला स्तर पर समानित भी किया जा चुका है।
पारंपरिक खेती, आधुनिक सोच: एक कहानी यह भी…

56 वर्षीय लूणाराम मूण्ड, सुरनाणा गांव से, पशुपालन और पारंपरिक खेती दोनों को सफलतापूर्वक संभाल रहे हैं। वे रोजाना 60 लीटर दूध का उत्पादन करते हैं, जिसे स्थानीय बाजार में बेचकर आमदनी अर्जित करते हैं। लूणाराम पोस्ट ब्रांच मैन की सरकारी जिमेदारी भी निभा रहे हैं और पशुपालन को आजीविका का मुय स्रोत बनाए हुए हैं।
संघर्ष से सफलता तक: कालूराम की प्रेरक यात्रा
छतरगढ़ तहसील के कृष्णनगर गांव के कालूराम सहारण ने पशुपालन को कर्ज लेकर शुरू किया। आज वे न केवल कर्जमुक्त हैं, बल्कि हर महीने लाखों की कमाई कर रहे हैं। पूरा परिवार पत्नी सुशीला, भाई रामेश्वरलाल और भाभी कलावती मिलकर रोज़ाना 80 लीटर से अधिक दूध बेचता है। दूध के साथ-साथ कालूराम गोबर से खाद तैयार कर किसानों को बेचते हैं। वर्तमान में गाय के दूध की कीमत 35 रुपए प्रति लीटर है, जिससे उन्हें नियमित आय हो रही है।
ऐसे बन रहा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़
पारंपरिक खेती से आगे बढ़ते हुए अब ग्रामीण युवा डेयरी उद्योग को स्थायी और लाभकारी व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं। शिक्षा, प्रशिक्षण और समर्पण के साथ यदि इस क्षेत्र में कदम रखा जाए, तो यह न केवल आत्मनिर्भरता की राह खोलता है, बल्कि गांवों की आर्थिक रीढ़ को मजबूत भी कर रहा है।
पत्रिका व्यू
गांवों की बदलती धड़कन

खेती के साथ डेयरी अब गांवों की नई पहचान बनती जा रही है। जहां कभी केवल अनाज उगाया जाता था, वहां अब दूध उत्पादन से आय के रास्ते खुल रहे हैं। खास बात यह है कि इस काम में पूरा परिवार भागीदार हो रहा है। महिलाएं, युवा और बुजुर्ग सभी। यह न केवल रोजगार का मजबूत विकल्प है, बल्कि आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नींव भी। सरकार और संस्थानों का प्रशिक्षण और सहयोग इसे और गति दे सकता है। ज़रूरत है योजनाओं को ज़मीनी स्तर तक पहुंचाने की, ताकि गांवों की यह धार सिर्फ बहे नहीं, बहाव बन कर शहरों तक भी पहुंचे।

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