scriptधीरे धीरे घटता जा रहा है पश्चिमी राजस्थान का मेवा फोग | The dry fog of western Rajasthan is gradually decreasing | Patrika News
बीकानेर

धीरे धीरे घटता जा रहा है पश्चिमी राजस्थान का मेवा फोग

पश्चिमी राजस्थान का मेवा कहलाने वाला फोग का पौधा धीरे धीरे विलुप्त होता जा रहा है। वहीं निरंतर पड़ने वाले अकाल, नहरी व नलकूप क्षेत्र में कृषि कार्य में हुई वृद्धि के कारण मरुस्थल की ऐसी कई उपयोगी झाड़ियां धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है।

बीकानेरMar 04, 2025 / 08:02 am

Jai Prakash Gahlot

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श्रीकोलायत. पश्चिमी राजस्थान का मेवा कहलाने वाला फोग का पौधा धीरे धीरे विलुप्त होता जा रहा है। वहीं निरंतर पड़ने वाले अकाल, नहरी व नलकूप क्षेत्र में कृषि कार्य में हुई वृद्धि के कारण मरुस्थल की ऐसी कई उपयोगी झाड़ियां धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है। फोग की झाड़ी पशुओं और मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।फोग का वैज्ञानिक नाम ”केलिगोनम पॉलीगोनाइडिस” है। जो पश्चिमी राजस्थान के रेतीले टीलों में पाया जाता है। थार रेगिस्तान में फोग के फूल ”फोगला” का रायता बहुत ही प्रसिद्ध है। इस रायते के पीछे एक वैज्ञानिक तथ्य है कि इसके फूलों के बने रायते की तासीर ठंडी होती है, जो रेगिस्तान में ”लू” से बचाता है और शरीर में पानी की कमी नहीं होने देता। वहीं पश्चिमी राजस्थान की संस्कृति से इस पौधे का विशेष जुडाव है। इसकी जड़ें गहरी होने के कारण यह रेगिस्तानी धारों को बांधकर रखती है। मरुस्थल की विषम परिस्थितियों में ऐसे पौधे क्षेत्र के पर्यावरणीय संतुलन में अहम भूमिका निभाते है।
प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर

फोग के फलों और फूलों में 18% प्रोटीन एवं 71 % से अधिक कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पाई जाती है, जो ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। फोग का पौधा अत्यंत सूखे और पाले दोनों ही परिस्थितियों में जीवित रह सकता है, इसकी यही खासियत ही इससे थार के अनुकूल बनाती है। राजस्थान के मरुस्थल में उगने वाला यह औषधीय पौधा कई मायने में फायदेमंद है। यह पौधा स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए लाभदायक होता है। फोग की लकड़ी को ईंधन के रूप में काम लिया जाता है।
हवन में भी उपयोगी

वहीं इसका उपयोग राजस्थान में शुभ कार्यों के लिए किये जाने वाले हवन भी अब भी किया जा रहा है। जिसे समिधा कहा जाता है। हालांकि अब फोग के पौधे पश्चिमी राजस्थान से लगातार घटते जा रहे है। इसकी झाड़ी को बढ़ने में सात से आठ साल का समय लग जाता है। जिस गति से यह पौधा विलुप्त हो रहा है,उस गति से यह बढ़ नहीं पा रहा है। पश्चिमी राजस्थान में फोग के पर्यावरणीय एवं औषधीय मूल्यों को समझते हुए इसका संरक्षण बेहद आवश्यक है।

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