डाबला गांव से जुड़े 62 वर्षीय बहादुरमल सिद्ध बताते हैं कि तीन साल पहले यहां पौधरोपण का कार्य शुरू हुआ। अब चारों ओर हरियाली है। 12 तलाई भी बनाई जा चुकी हैं। पहले जहां अवैध खनन और आपराधिक गतिविधियां होती थीं, वहां अब शाम को लोग घूमने आते हैं। शांति का यह माहौल हरियाली का सीधा परिणाम है। वहीं शिक्षक खुमाणा राम सारण ने बताया कि प्रो. ज्याणी की प्रेरणा से कालवास स्थित स्कूल में सामूहिक प्रयास से वनखंड विकसित किया गया। अब गर्मियों में भी परिसर ठंडा रहता है।
प्रो. ज्याणी ने 2013 में अपने वेतन से डूंगर कॉलेज की 16 एकड़ परित्यक्त भूमि पर हरियाली लाने का बीड़ा उठाया। आज वहां 90 से अधिक प्रजातियों के करीब 3 हजार पेड़ लहलहा रहे हैं। संस्थागत वन में सेवण, धामण, बूर जैसी स्थानीय मरुस्थली घास भी उगाई गई हैं, जो पारिस्थितिकी और जैव विविधता संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यहां आज लोमड़ी, खरगोश, छिपकलियां और अन्य सरीसृप सहज दिखते हैं।
प्रो. ज्याणी बताते हैं कि हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, किंग्स कॉलेज लंदन और भारत के सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलेबोरेटिव की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारत के अधिकांश शहरों में ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है। ऐसे में डूंगर कॉलेज का संस्थागत वन हीट एक्शन प्लान और जलवायु आपदाओं से निपटने के लिए एक सफल मॉडल के रूप में अपनाया जा सकता है।