प्रॉफिट बुकिंग का तरीका
म्यूचुअल फंड में प्रॉफिट बुकिंग का सामान्य तरीका यह है कि जब भी आपका
निवेश लक्ष्य हासिल हो जाए, आप पैसे निकाल सकते हैं। इसके अलावा जब मार्केट वैल्यूएशन बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ लगे तो प्रॉफिट बुक करने का सही समय हो सकता है। वहीं, अगर फंड की परफॉर्मेंस अपने बेंचमार्क या पीयर ग्रुप से कम है तो अपने निवेश के दोबारा मूल्यांकन पर विचार करें। म्यूचुअल फंड निवेश लॉन्ग टर्म के लिए है, इसलिए निवेशक को अपने पोर्टफोलियो की पहली बार समीक्षा निवेश के 3 साल बाद और उसके बाद कम से कम हर साल एक बार करनी चाहिए।
क्या रखें स्ट्रैटजी
एके निगम कहते हैं, एकमुश्त रिडम्प्शन की बजाए आंशिक रूप से करें। बेहतर तरीका यह रहता है कि निवेश को बनाए रखते हुए मुनाफा निकालें। उनका कहना है कि प्रॉफिट बुकिंग में टारगेट-बेस्ड अप्रोच रखें। पहले रिटर्न का एक टारगेट तय करें और जब वह हासिल जाए तो प्रॉफिट बुक कर लें। इसके अलावा, रेगुलर पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग जरूरी है। समय-समय पर अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करें और ज्यादा से ज्यादा एसेट एलोकेशन बनाए रखने के लिए उसे रीबैलेंस करें। रीबैलेंसिंग से पहले आपको एग्जिट लोड की जांच जरूर करनी चाहिए।
जरूरी हो तो लॉस बुक करें
रीबैलेंसिंग करते समय इक्विटी से होने वाले प्रॉफिट की जांच कर लें, यह 1.25 लाख रुपए से ज्यादा नहीं होना चाहिए, जोकि टैक्स फ्री लिमिट है। इसके अलावा अगर कोई नुकसान है तो सेट ऑफ करने के लिए कैरी फॉरवर्ड लॉस समझ लें। वहीं, कम परफॉर्म करने वाले फंड या बेंचमार्क के मुताबिक परफॉर्म नहीं करने वाले फंड की जांच करें, अगर जरूरी हो तो सेट ऑफ या कैरी फॉरवर्ड करने के लिए लॉस बुक करें।