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फैक्टर फंड्स…स्मार्ट निवेश का नया फॉर्मूला, पर क्या आपको लेना चाहिए जोखिम?

Share Market: फैक्टर इन्वेस्टिंग एक आधुनिक म्यूचुअल फंड रणनीति है, जो पारंपरिक तरीकों से अलग होकर विश्लेषण आधारित निवेश अवसर तलाशती है। इसमें स्टॉक्स को वैल्यू, ग्रोथ, क्वालिटी, लो वोलेटिलिटी और मोमेंटम जैसे फैक्टर्स से चुना जाता है।

मुंबईFeb 19, 2025 / 10:09 am

Ratan Gaurav

Share Market

Share Market

Share Market: म्यूचुअल फंड में फैक्टर इन्वेस्टिंग एक आधुनिक निवेश रणनीति है, जिसमें उन शेयरों या प्रतिभूतियों को चुना जाता है, जिनमें बेहतर रिटर्न (Share Market) देने की क्षमता होती है। यह पारंपरिक निवेश के तरीकों से भिन्न होती है और एक अनुशासित दृष्टिकोण अपनाती है। इस रणनीति में केवल मार्केट कैप वेटेड निवेश पर निर्भर रहने के बजाय, विभिन्न फैक्टर्स का विश्लेषण कर निवेश के बेहतर अवसरों की पहचान की जाती है। हालांकि, इसमें इंडेक्स फंड (Share Market) की तुलना में अधिक जोखिम होता है, लेकिन संभावित रिटर्न भी अधिक मिल सकता है।

दो प्रकार के फैक्टर अहम (Share Market)

मैक्रोइकोनॉमिक फैक्टर

  • यह विभिन्न एसेट क्लास में बड़े जोखिमों को दर्शाते हैं।
  • महंगाई दर, जीडीपी ग्रोथ और बेरोजगारी दर जैसे फैक्टर इसमें शामिल हैं।
स्टाइल फैक्टर
  • किसी एसेट क्लास के भीतर रिटर्न और जोखिम को समझाने में मदद करते हैं।
  • इसमें ग्रोथ और वैल्यू स्टॉक्स, कंपनी का मार्केट साइज, इंडस्ट्री और सेक्टर शामिल होते हैं।
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कैसे बनता है पोर्टफोलियो?

मोमेंटम: हालिया प्राइस ट्रेंड मजबूत होने वाले शेयरों को प्राथमिकता दी जाती है। यह रणनीति बुल मार्केट में अधिक प्रभावी होती है।

क्वालिटी: ऐसी कंपनियां चुनी जाती हैं, जिनकी आय स्थिर होती है और बैलेंसशीट मजबूत होती है।
वैल्यू: ऐसे स्टॉक्स जिनका प्राइस-टू-अर्निंग (पीई) और प्राइस-टू-बुक (पी/बी) रेश्यो कम होता है।

ग्रोथ: वे कंपनियां, जो लगातार रेवेन्यू और मुनाफे में वृद्धि दर्ज करती हैं।

लो वोलैटिलिटी: जिन शेयरों में कीमतों में कम उतार-चढ़ाव होता है, जिससे जोखिम घटता है।

क्या हैं फैक्टर फंड्स और कैसे करता हैं काम?

फैक्टर फंड्स, पारंपरिक इंडेक्स फंड्स से अलग होते हैं। इनमें स्टॉक्स को किसी खास फैक्टर जैसे कि वैल्यू, ग्रोथ, क्वालिटी, लो वोलेटिलिटी और मोमेंटम के आधार पर चुना जाता है। यह स्मार्ट बीटा इन्वेस्टमेंट का हिस्सा होते हैं, जहां निवेशकों को मार्केट कैप आधारित निवेश से बेहतर रिटर्न मिलने की संभावना होती है।

क्या निवेशकों के लिए सही हैं फैक्टर फंड्स?

हालांकि फैक्टर फंड्स का प्रदर्शन कई बार बेहतर होता है, लेकिन इनमें जोखिम भी अधिक होता है। खासतौर पर तब जब बाजार में उतार-चढ़ाव अधिक हो। यदि आप लंबी अवधि के निवेशक हैं और रिस्क लेने की क्षमता रखते हैं, तो फैक्टर फंड्स आपके पोर्टफोलियो में अच्छा ऐड-ऑन हो सकते हैं। लेकिन शॉर्ट टर्म में इनसे अत्यधिक रिटर्न की उम्मीद करना सही नहीं होगा।

फिनटेक एक्सपर्ट्स की राय

फिनटेक एक्सपर्ट्स का मानना है कि फैक्टर फंड्स उन निवेशकों के लिए बेहतर हैं जो अपने निवेश को डायवर्सिफाई करना चाहते हैं और पारंपरिक इंडेक्स फंड्स से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद रखते हैं। लेकिन इसमें निवेश करने से पहले निवेशकों को मार्केट की मौजूदा स्थिति और अपने जोखिम उठाने की क्षमता को ध्यान में रखना चाहिए।
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क्या करना चाहिए निवेश?

सेबी रजिस्टर्ड निवेश सलाहकार दीपेश राघव का मानना है कि
मोमेंटम रणनीति का अतीत में प्रदर्शन अच्छा रहा है, लेकिन भविष्य में इसकी गारंटी नहीं होती। फैक्टर फंडों का लाइव ट्रैक रिकॉर्ड सीमित होता है, इसलिए निवेश से पहले पूरी जानकारी प्राप्त करें। निवेशक (Share Market) अपने पोर्टफोलियो को पाँच अलग-अलग रणनीतियों- मोमेंटम, वैल्यू, ग्रोथ, क्वालिटी और मिडकैप एवं स्मॉलकैप में विभाजित करें। प्रत्येक रणनीति में 20% निवेश करना एक संतुलित दृष्टिकोण हो सकता है। यदि इस रणनीति को सही तरीके से अपनाया जाए, तो मोमेंटम फंड आपके मुख्य पोर्टफोलियो (Share Market) का हिस्सा बन सकता है और जोखिम भी नियंत्रित रहेगा।

मोमेंटम से सबसे अधिक रिस्क और रिटर्न

मोतीलाल ओसवाल एएमसी के पैसिव फंड हेड प्रतीक ओसवाल के अनुसार, भारत में फैक्टर निवेश तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। फैक्टर फंडों में मोमेंटम सबसे बड़ी और सबसे अधिक अपनाई जाने वाली रणनीति है। मोमेंटम आधारित फैक्टर निफ्टी 50, निफ्टी 100 और निफ्टी 500 जैसे सूचकांकों में से बेहतर प्रदर्शन (Share Market) करने वाले शेयरों को चुनता है। यह रणनीति पिछले 6 से 12 महीनों में सबसे अधिक मूल्य वृद्धि वाले शेयरों में निवेश करती है। बुल मार्केट में यह रणनीति अच्छा प्रदर्शन करती है, लेकिन गिरावट (Share Market) के दौरान इसमें अधिक नुकसान होने की संभावना रहती है। प्रतीक ओसवाल के अनुसार, मोमेंटम फंड में निफ्टी 50 के मुकाबले 10 से 15 फीसदी अधिक उतार-चढ़ाव हो सकता है।

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