बड़े अस्पताल में संसाधन, पर प्रदर्शन फेल
छतरपुर जिला अस्पताल में 62 डॉक्टर पदस्थ हैं, सभी जरूरी व्यवस्थाएं मौजूद हैं, फिर भी कायाकल्प अभियान में यह अस्पताल 70 पासिंग अंकों तक भी नहीं पहुंच सका। इसके उलट सीएचसी बिलहरी, नैनागिर, सिगरावन और पीएचसी राजनगर जैसे छोटे केंद्रों ने 82 से 86 अंकों के बीच प्रदर्शन कर यह बता दिया कि व्यवस्था सुधार की असली कुंजी जवाबदेही और निरंतर निगरानी है।कायाकल्प का ये है मकसदकायाकल्प अभियान, जो कि स्वच्छ भारत मिशन का हिस्सा है, अस्पतालों में साफ-सफाई, संक्रमण नियंत्रण, मरीजों के अनुकूल वातावरण और रिकॉर्ड संधारण जैसे 7 मुख्य मानकों पर अस्पतालों को परखता है। इन मानकों में सुधार करने वाले संस्थानों को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जाता है।
छोटे अस्पताल क्यों बने मिसाल?
छतरपुर के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों ने सीमित स्टाफ के बावजूद बेहतर सफाई, व्यवस्थित रिकॉर्ड, वार्ड प्रबंधन और मरीज फीडबैक को प्राथमिकता दी। इससे न केवल उनकी गुणवत्ता बढ़ी, बल्कि मरीजों का भरोसा भी जीता। डॉ. ज्योति अहिरवार (सीएचसी बिलहरी) सीएचओ प्रीतेश सोनी (नैनागिर सीएचसी) सीएचओ राजेंद्र जैन (सिगरावन सीएचसी), बीएमओ (पीएचसी राजनगर) को भोपाल में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल और एनएचआरएचएम की एमडी डॉ. सलोनी सिडाना ने सम्मानित किया।
जिला अस्पताल बार-बार क्यों चूकता है?
पिछले वर्ष भी जिला अस्पताल सिर्फ सांत्वना पुरस्कार पा सका था। इस बार संभागीय और राज्य स्तरीय निरीक्षण के दौरान मिली चेतावनी के बावजूद सुधार नहीं किए गए। फेल होने के मुख्य कारण रहे- -सफाई की गंभीर अनदेखी- मरीज फीडबैक की अनुपस्थिति- अव्यवस्थित रिकॉर्ड संधारण- वार्डों में अनावश्यक भीड़ और अव्यवस्थाएं
सीखने की जरूरत है
छोटे अस्पतालों ने कम संसाधनों में बड़ा कमाल कर दिखाया है। इससे स्पष्ट है कि यदि जिला अस्पताल प्रबंधन इच्छाशक्ति और जिम्मेदारी के साथ काम करे, तो संसाधनों की ताकत को साकार किया जा सकता है। डॉ. आरपी गुप्ता, सीएमएचओ