रिन्युअल वर्क के तहत हुआ था काम
यह सडक़ डेढ़ साल पहले एनुअल रिपेयरिंग फंड से बीटी रिन्युवल वर्क के तहत बनाई गई थी। इस कार्य के दौरान, पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों और ठेकेदार ने मिलकर गड़बड़ी की। सडक़ के निर्माण के पहले सफाई नहीं की गई, और बारिश के मौसम में ही डामर डालने का काम शुरू कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप, सडक़ बहुत जल्द उखडऩे लगी। सडक़ पर डाले गए डामर की गुणवत्ता भी खराब थी, क्योंकि ठेकेदार ने निर्धारित तापमान से कम तापमान में डामर डाला और डामर की मात्रा भी घटाई गई थी। इसके साथ ही, सडक़ में मिलाई गई गिट्टी भी बहुत बारीक थी, जिससे सडक़ की मजबूती कम हो गई और महज तीन महीने में ही सडक़ उखडऩे लगी।
12 किलोमीटर के सफर में लग रहे 45 मिनट
सडक़ के खराब होने से स्थानीय लोगों को बहुत समस्याएं हो रही हैं। 12 किलोमीटर का सफर तय करने में अब 45 मिनट का समय लगने लगा है, जबकि पहले यह समय बहुत कम था। इसके अलावा, जटाशंकर धाम जाने वाले श्रद्धालुओं को भी इस मार्ग से गुजरते वक्त काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। क्षेत्रीय विधायक राजेश शुक्ला ने इस मार्ग पर डिवाइडर सडक़ बनाने की मांग मुख्यमंत्री से की थी। 19 दिसंबर को सटई में आयोजित आमसभा में मुख्यमंत्री से और 20 फरवरी को जटाशंकर धाम में आयोजित जल सहेली सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस मार्ग पर डिवाइडर सडक़ निर्माण की मांग की थी। हालांकि, इस संबंध में अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया।
रेत से भरे वाहनों से सडक़ हो रही बर्बाद
इसके अलावा, रेत माफिया ने इस मार्ग के किनारे से अवैध तरीके से बड़ी मात्रा में रेत निकाल ली है, जिससे सडक़ और भी क्षतिग्रस्त हो गई है। रतुआ नाला के पास सडक़ के किनारे गहरी खाई बन गई है, जिससे गंभीर दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ गया है। यह सडक़ लोक निर्माण विभाग के अधीन है, लेकिन विभाग ने इस मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं दिया है।
इनका कहना है
सडक़ के सुधार के लिए जल्द ही काम किया जाएगा और अवैध रेत खनन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
पीके जडिया, प्रभारी एसडीओ पीडब्ल्यूडी