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Women’s Day Special: अब क्रिकेट में नहीं होता इन शब्दों का इस्तेमाल, अंजुम चोपड़ा ने बताई बदलाव की सबसे बड़ी वजह

Women’s Day Special: विश्व पटल पर अब जितना मेंस क्रिकेट को बोलबाला है, उतना ही महिलाओं ने धूम मचाया हुआ है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के अलावा महिलाओं का WPL, The Hundred और बिग बैश लीग का भी आयोजन होने लगा है। जिसके बाद कई चीजे बदल दी गईं।

भारतMar 07, 2025 / 08:48 pm

Vivek Kumar Singh

Women's Day Special
Anjum Chopra on Women’s Day Special: इंडियन वुमन क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान और अपनी धारदार से खेल की बारीकियां समझाने वालीं अंजुम चोपड़ा किसी पहचान की मोहताज नहीं। जेन जी की आइकन रहीं तो जेन अल्फा भी इनकी कम मुरीद नहीं है। क्या एक ऐसे देश में जिसमें ‘जेंटलमेन गेम’ को धर्म की तरह पूजा जाता हो, वहां एक ‘जेंटललेडी’ का सफर आसान रहा? कैसे खुद को मोटिवेट किया और किस तरह इस मुकाम तक पहुंचीं? ऐसे कई सवालों के जवाब महिला दिवस के खास मौके पर पद्म श्री अंजुम चोपड़ा ने दिए।

स्पोर्ट्सपरसन से घिरी रहीं अंजुम

अंजुम चोपड़ा के नाना एथलीट, पिता गोल्फर, मां कार रैली चैंपियन और मामा भी क्रिकेटर रहे हों, भला उनके लिए क्रिकेट खेलने में कैसी दिक्कत? लेकिन ऐसा नहीं रहा। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान ने कहा, “स्पोर्ट्स में आना आसान था क्योंकि घर में सब इसे समझते थे, लेकिन क्रिकेट को बतौर करियर चुनना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल था। मुझे याद है नेशनल चैंपियनशिप में खेलना था, लेकिन उसी समय मेरा एमबीए एंट्रेंस भी था। घर से कहा गया कि पहले पढ़ाई फिर खेल। तब गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन मैंने अपनी पढ़ाई भी खेल के साथ पूरी की।” अंजुम के मुताबिक, “उस समय आम सोच ही कुछ ऐसी थी। लगता ही नहीं था कि क्रिकेट में करियर है। वूमेन क्रिकेट को तो बस एक शगल या हॉबी की तरह ट्रीट किया जाता था, लेकिन हां, हमने मेहनत भी खूब की।”
अक्सर सवाल पूछा जाता है कि तब और अब में क्या बदला है? महिला क्रिकेट का रसूख बढ़ा है या अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है? अंजुम कहती हैं- “बदला तो है। बदलाव अच्छा है। हमने तो ग्राउंड पर घास काटी है, रोलर तक चलाया है। प्रैक्टिस के दौरान बजरी पर मैट बिछाई है, हमारे पास वो सुविधाएं नहीं थीं। एस्ट्रो टर्फ तो बहुत बाद में आया। इससे हुआ ये कि हम जमीन से जुड़े रहे और मजबूत बने रहे। चाहे वो फील्ड में हो या फिर उससे बाहर!”

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इस सवाल पर हंसते हुए कहती हैं, “क्यों, मैन ऑफ द मैच की जगह अब प्लेयर ऑफ द मैच, बैट्समैन की जगह ‘बैटर’ शब्द इस्तेमाल होता है, यही तो विंड ऑफ चेंज है। मुझे याद है 1995 में जब मुझे इंडियन टीम का ब्लेजर मिला था, तो हम सब नेहरू स्टेडियम डॉरमेट्री में रहती थीं। मैं खुशी से फूली नहीं समा रही थी। ऊपर-नीचे दौड़ रही थी। एक बात और, उस समय खुद को ब्लेजर पहन आईने में भी नहीं देख सकती थी। जानते हैं क्यों? क्योंकि तब एक आईना तक नहीं था। तो कह सकते हैं चीजें बदली हैं। पुरुष क्रिकेट ने महिला क्रिकेटर्स को सपने देखने का हौसला दिया है। डब्ल्यूपीएल में पहले क्राउड न के बराबर दिखता था, लेकिन अब तादाद बढ़ी है।”

युवाओं के लिए क्या कहना चाहेंगी अंजुम चोपड़ा’?

बस एक बात, मजबूत बनो। क्रिकेट एक टीम गेम है, लेकिन उतना ही इंडिविजुअल भी। मतलब प्रयास करना मत छोड़ें। मेहनत करें। खुद नहीं समझ पा रहीं तो परिवार से अपने गुण-दोष के बारे में जरूर समझें।

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