Monsoon Disaster: उत्तरकाशी में बारिश का कहर: सड़कों का वजूद मिटा, घरों में मलबा, फसलें तबाह
Uttarkashi Ravaged by Torrential Rains: उत्तरकाशी जिले में लगातार हो रही मूसलाधार बारिश ने ग्रामीण इलाकों में भारी तबाही मचाई है। भूस्खलन और सड़क धंसने की घटनाओं ने जनजीवन को प्रभावित किया है। कई घरों में मलबा घुस गया है और सेब की फसलें बर्बाद हो गई हैं, जिससे लोग दहशत में हैं।
भारी तबाही के बाद प्रशासन अलर्ट पर फोटो सोर्स : Patrika
Monsoon Disaster Uttarakhand : उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बीते कुछ दिनों से जारी मूसलाधार बारिश ने ग्रामीण इलाकों को तहस-नहस कर दिया है। खासकर रात के समय में हुई लगातार झमाझम बारिश ने पंचगाई पट्टी के गांव जखोल, पांव, सुनकुड़ी में भारी भूस्खलन और सड़क धंसने की घटनाए सामने लाई हैं। इनसे ग्रामीणों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। प्रमुख मोटर मार्गों पर सड़कें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई हैं, दर्जनों घरों में मलबा और पानी भर गया है, और किसानों के सेब के बाग पतन के कगार पर हैं।
जखोल-पांव मोटर मार्ग पर सुनकुड़ी के पास लगभग 20 मीटर सड़क बह गई, जिससे आवागमन पूरी तरह ठप हो गया है। ग्रामीण अब खतरनाक जंगल मार्गों से गुजरने को मजबूर हैं। भूस्खलन की तीव्रता इतनी अधिक थी कि कुछ गाँवों की मुख्य सड़कें रातों-रात धंस गईं, जिससे राहत और बचाव कार्य भी प्रभावित हुआ। पांव गांव में, एक दो मंजिला मकान की सुरक्षा दीवार गिर चुकी है, जिससे आसपास के निवासियों में भय व्याप्त है।
आवासीय नुकसान एवं जीवन अस्त-व्यस्त
जखोल गांव में दर्जनों घरों में बारिश का पानी और मलबा घुस गया, जिससे परिवारों को आवासीय अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों की मानों रोजमर्रा की ज़िन्दगी रुक-सी गई है,खाना पकाना, सफाई, स्कूल आना-जाना सब प्रभावित हुआ। किशन रावत, प्रेम सिंह, सुल्तान कमल सिंह जैसे स्थानीय निवासियों ने बताया कि “पत्ता-पत्ता कीचड़ और मलबा घरों में भर गया है, हम डर रहे हैं कि कब दीवारें भी गिर जाएँ।”
किसानों को भारी नुकसान
भारी बारिश और मलबे के आने से सेब के बगीचे को भी बड़ा नुकसान हुआ है। किसानों ने बताया कि फल झड़ गए, कई पेड़ बह गए और उनकी साल भर की मेहनत बाढ़ गई। प्रेम सिंह कहते हैं, “सेब की फसल अभी पूरी तरह पक रही थी, बारिश ने एक झटके में सब नष्ट कर दिया।” कुप्तराजन, एक अन्य किसान, कहते हैं, “यह नुकसान हमें आर्थिक रूप से भारी झटका देगा।”
आवागमन बाधित, राहत कार्य प्रभावित
मुख्य मार्गों के बंद होने से एम्बुलेंस, स्कूल बसें और जरूरी सेवाएं परेशान हैं। प्रशासन ने जंगल मार्गों और वैकल्पिक रूटों का इस्तेमाल शुरू कराया, लेकिन धंसन और मलबा हटाने में समय लग रहा है। जिला प्रशासन और आपदा प्रबंधन दल लगातार प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य और मलबा हटाने में जुट गए हैं।
प्रशासन की प्रति क्रिया
डीएम उत्तरकाशी और एसडीआरएफ / एनडीआरएफ टीमें प्रभावित गांवों का निरीक्षण कर रही हैं। स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सा शिविर लगाया गया है, ताकि प्रभावित लोगों को प्राथमिक उपचार मिल सके। बिजली और पानी की आपूर्ति बहाल करने की प्राथमिकता भी एडमिनिस्ट्रेशन की फोकस में है। जिला पंचायत स्तर पर तनावग्रस्त घरों के लिए त्वरित अनुदान देने की योजना तैयार हो रही है।
मौसम विज्ञान एवं भविष्यवाणी
मौसम विभाग के अनुसार, रविवार और सोमवार को बारिश थोड़ी कम रहेगी, लेकिन मंगलवार से शुरू होकर पूरे सप्ताह बारिश का सिलसिला जारी रहेगा। देवभूमि में मानसून की तीव्र सक्रियता को देखते हुए अलर्ट जारी किया गया है। ज़िले में हो रहे बारिश की बाढ़-बचाव कार्य में तकनीकी सहूलियत और सतर्कता बेहद महत्वपूर्ण है।
राहत कार्य
ग्रामीणों को सलाह दी गई है कि नदी और नाले के किनारे ना जाएँ, विशेषकर रात में।
शौचालयों और जल स्रोतों को सुरक्षित स्थानों पर रखा जाए।
सेब, आलू, फूलों जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों की सुरक्षा के लिए पेड़ों की शाखाओं को मजबूत बांधने की जरूरत है।
स्वास्थ्य उपकरणों, जैसे कीटाणु नाशक और साफ पानी, उपलब्ध करवाने हेतु चिकित्सा विभाग ने कदम उठाए हैं।
आने वाले दिनों की तैयारी
बाढ़ राहत कार्य, मलबा हटाने की कार्य योजना और मूलभूत सुविधाएँ बहाल करने के प्रयास ज़ोरों पर हैं। प्रशासन ने जंगल मार्गों की स्थिति का वीडियो निरीक्षण शुरू कर दिया है और नयी मार्गदर्शक रणनीति पर काम जारी है। यदि बारिश तेज हुई, तो डीएम ने अस्थाई राहत शिविर, विशेषकर गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों के लिए तैयार करने का निर्देश दिया है।
भारी बारिश के समय पहाड़ों में सतह पर जमा पानी पृथ्वी को कमजोर करता है, जिसका सीधा असर ऊपरी ढलानों पर होने लगता है, जिससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है। उत्तरकाशी जैसे इलाके में जहां प्रकृति स्वयं संवेदनशील है, ये घटनाएं इसलिए लगातार आती हैं। इस पर रोकथाम केवल तत्काल राहत कार्य नहीं बल्कि दीर्घकालिक ढलान स्थिरीकरण, वन संरक्षण और बरसाती नालों की सुरक्षा से ही संभव है।
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