भारत में सबसे ज्यादा मामले
स्विट्जरलैंड की एक वैश्विक एंटीबायोटिक अनुसंधान संस्था और अमेरिकी कंपनी के आंकड़ों के आधार पर किए गए अध्ययन में सामने आया है कि 2019 में आठ निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कुल 15 लाख बैक्टीरियल इंफेक्शन (Bacterial Infection) के मामले सामने आए। इनमें से 10 लाख से ज्यादा केवल भारत में पाए गए। हैरानी की बात यह है कि इनमें से केवल 8 फीसदी मामलों में ही इलाज पूरी तरह प्रभावी रहा। यानी 92 फीसदी मरीजों को या तो सही इलाज नहीं मिला या फिर दवाएं बेअसर हो रहीं है। यह भी पढ़ें: NFHS की रिपोर्ट : गुजरात में मोटापा का कारण है ढोकला, फाफड़ा, थेपला? सूरत सबसे ज्यादा प्रभावित, ये जिले भी टॉप पर एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस बढ़ा खतरा
”द लैंसेट इंफेक्शियस डिजीज” जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और मेक्सिको जैसे देशों में एंटीबायोटिक दवाएं तेजी से असर खो रही हैं। शोध में यह बात भी सामने आई कि जिन दवाओं को गंभीर संक्रमणों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। वे भी अब पूरी तरह कारगर नहीं रहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस अब सिर्फ एक देश की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की समस्या है।
3.9 करोड़ लोगों को संक्रमण का खतरा
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर स्थिति ऐसी ही रही तो आने वाले 25 वर्षों में करीब 3.9 करोड़ लोग गंभीर बैक्टीरियल संक्रमणों की चपेट में आ सकते हैं। शोध में यह भी बताया गया कि 1990 से लेकर 2021 तक हर साल दुनियाभर में 10 लाख से ज्यादा मौतें ऐसी ही दवाओं के बेअसर होने की वजह से हुईं।
सबसे ज्यादा दवा भारत में बिकी, पर इलाज सबसे कम
शोध में यह भी पाया गया कि भारत ने इन संक्रमणों से निपटने के लिए सबसे ज्यादा दवाएं खरीदीं गयी। कुल दवा खपत में भारत का हिस्सा 80.5 फीसदी था। इनमें टाइगेसाइक्लिन जैसी शक्तिशाली एंटीबायोटिक शामिल थी, जो गंभीर मामलों में दी जाती है। इसके बावजूद सही इलाज केवल 7.8 फीसदी मरीजों को ही मिल पाया। यह भी पढ़ें: Methi Water Side Effects: इन 5 लोगों को भूलकर भी नहीं पीना चाहिए मेथी का पानी, जानिए इसके नुकसान रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि अगर इस खतरे को समय रहते नहीं रोका गया तो आने वाले सालों में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। एंटीबायोटिक का जिम्मेदारी से इस्तेमाल, संक्रमण की रोकथाम के उपाय और रिसर्च में निवेश बढ़ाना जरूरी है।