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करोड़ों लोग खो सकते हैं अपनी सुनने की शक्ति – WHO ALERT

WHO hearing loss report 2050 : WHO ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि 2050 तक दुनियाभर में बहरापन एक बड़ी चुनौती बन सकता है। हेडफोन के इस्तेमाल से सुनने की समस्या बढ़ रही है। इस समस्या को लेकर हमने बात की जयपुर से सीनियर ईएनटी विशेषज्ञ, डॉ भीम सिंह पांडेय से।

भारतMar 02, 2025 / 06:32 pm

Manoj Kumar

WHO alert Hearing Loss Crisis Millions of people may lose their hearing by 2050

WHO alert Hearing Loss Crisis Millions of people may lose their hearing by 2050

Hearing Loss Crisis : आज की तेज रफ्तार जिंदगी में शोरगुल और तेज़ आवाज़ का हमारी सेहत पर गहरा असर पड़ रहा है, खासकर सुनने की क्षमता पर। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक दुनिया में लगभग 2.5 अरब लोग किसी न किसी रूप में सुनने की समस्या से ग्रसित हो सकते हैं। जयपुर से सीनियर ईएनटी विशेषज्ञ, डॉ भीम सिंह पांडेय बता रहे हैं बहरेपन के कारणों, इसके प्रभावों और नवीनतम उपचार विकल्पों के बारे में ।
Hearing loss in youth : यह समस्या विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अधिक गंभीर है, जहां एक अरब से अधिक युवा असुरक्षित उपकरणों और शोरगुल वाले वातावरण के कारण बहरेपन के खतरे में हैं। यह न केवल स्वास्थ्य बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी भारी प्रभाव डाल रही है।
शोरगुल वाले वातावरण में लंबे समय तक रहने और ऊंची आवाज में हेडफोन के इस्तेमाल से सुनने की समस्या बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक लगभग 2.5 अरब लोग किसी न किसी रूप में सुनने की समस्या से ग्रसित हो सकते हैं।

Hearing Loss Crisis : युवाओं में बढ़ता खतरा

आज की युवा पीढ़ी के लिए यह (Hearing Loss) समस्या और भी गंभीर होती जा रही है। एक अरब से अधिक युवा असुरक्षित उपकरणों के उपयोग के कारण सुनने की क्षमता के जोखिम में हैं। शोरगुल वाले वातावरण में लंबे समय तक रहना और अधिक ध्वनि स्तर पर हेडफोन का उपयोग करना इस समस्या को और बढ़ा रहा है।
Hearing Loss Crisis
Hearing Loss Crisis : 2050 तक करोड़ों लोग खो सकते हैं अपनी सुनने की शक्ति – WHO


Hearing Loss : सुनने की क्षमता बहाल करने की आधुनिक तकनीक

जयपुर के सीनियर ईएनटी डॉक्टर भीम सिंह पांडेय बताते हैं पहले सुनने की समस्याएं (Hearing Loss) ज्यादातर 60-65 वर्ष की उम्र के बाद देखी जाती थीं, लेकिन कोविड-19 के बाद से बच्चों और युवाओं में भी ये मामले तेजी से बढ़े हैं। ध्वनि प्रदूषण इसका एक बड़ा कारण है, वहीं जेनेटिक कारणों से जन्मजात बहरेपन के मामले भी बढ़ रहे हैं।
डॉ पांडेय बताते हैं जो लोग सुनने की समस्या (Hearing Loss) से जूझ रहे हैं, उनमें से कुछ चुनिंदा लोगों में कॉक्लियर इंप्लांट नामक अत्याधुनिक तकनीक एक प्रभावी समाधान है। इस प्रक्रिया में सर्जरी के जरिए एक विशेष उपकरण लगाया जाता है, जो ध्वनि ऊर्जा को विद्युत संकेतों में बदलकर मस्तिष्क तक पहुंचाता है, जिससे व्यक्ति सुनने में सक्षम हो जाता है।
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असल में, कॉक्लिया वह हिस्सा है जहां से ध्वनि गुजरती है, लेकिन वास्तविक श्रवण प्रक्रिया मस्तिष्क में होती है। कान केवल ध्वनि को मस्तिष्क तक पहुंचाने का माध्यम है। यदि किसी व्यक्ति की नसें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जैसा की जन्मजात अनुवांशिक कारणों, न्यूरोलॉजिकल बीमारियों तथा बढ़ती उम्र के प्रभाव से होता है तो आयुर्विज्ञान के पास जो भी समाधान है, जैसे की ब्रेन स्टेम इंप्लांट, वह अभी शोध का विषय है। यदि कॉक्लिया प्रभावित होता है जैसा की ध्वनि जनित श्रवण बाधा में होता है, या कान के संक्रमण व ओटोटॉक्सिक मेडिकेशन से होता है तो कॉक्लियर इंप्लांट के जरिए उसे सुनने में सहायता दी जा सकती है। किसी व्यक्ति की नसें क्षतिग्रस्त है या कोक्लिया यह जानने के लिए ए. बी.आर. टेस्ट की सहायता ली जाती है जो चुनिंदा ई ऐन टी केंद्रों पर उपलब्ध होता है।

ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित हो रहा है जेनेटिक्स

हद से ज्यादा शोर अब सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि सुनने की क्षमता के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। ध्वनि प्रदूषण लगातार हियरिंग लॉस की एक बड़ी वजह बन रहा है। तेज़ आवाज़ के लंबे संपर्क में रहने से कान के भीतर मौजूद नाज़ुक हेयर सेल्स क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति की सुनने की क्षमता कमजोर पड़ने लगती है। इतना ही नहीं, डीएनए और आरएनए जैसे आनुवंशिक घटकों में भी बदलाव देखे जा रहे हैं, जिससे अचानक सुनने की शक्ति खोने के मामले बढ़ रहे हैं।
अचानक सुनने की क्षमता खो जाना एक मेडिकल इमरजेंसी है, ठीक वैसे ही जैसे हार्ट अटैक या स्ट्रोक। अगर 72 घंटे के भीतर सही इलाज दिया जाए, तो मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है। वह बताते हैं कि कोविड-19 के बाद ऐसे मामलों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।

बच्चों को सुनने की समस्याओं से कैसे बचाया जाए?

नवजात शिशुओं में सुनने की समस्या के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे आम कारण जन्म के समय होने वाला पीलिया (जॉन्डिस) है। अगर बच्चा समय से पहले (9 महीने से पहले) जन्म लेता है, तो इस समस्या का खतरा और बढ़ जाता है। इसके अलावा, माता-पिता के बीच रक्त संबंध (कजिन मैरिज) भी सुनने की समस्याओं को जन्म दे सकता है।
आजकल आईवीएफ तकनीक के जरिए जन्म लेने वाले बच्चों में भी कुछ असामान्यताएं देखी जा रही हैं। इसलिए, अच्छी चिकित्सा देखभाल ही सबसे महत्वपूर्ण बचाव है। नवजात का जन्म ऐसी जगह हो, जहां सही मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध हों, क्योंकि जन्म के समय कुछ सेकंड (10-15 सेकंड) की ऑक्सीजन की कमी भी बहरेपन का कारण बन सकती है।
भारत में समस्या उपचार में देरी की है। इससे बचने के लिए निओनेटल हियरिंग स्क्रीनिंग (नवजात शिशुओं की सुनने की जांच) बहुत ज़रूरी है। यह प्रक्रिया दुनिया भर में नियमित रूप से की जाती है, लेकिन भारत में इसका प्रचलन अभी सीमित है। उनका कहना है कि अगर ऐसे बच्चों को एक साल के भीतर कॉक्लियर इम्प्लांट मिल जाए, तो वे सामान्य जीवन जी सकते हैं। हमारे देश में भी यह सुविधा उपलब्ध है लेकिन पब्लिक अवेयरनेस की कमी है जिसे बढ़ाया जा सकता है और सरकार इस दिशा में भरपूर प्रयास कर भी रही है।
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सुनने की समस्याओं के नवीनतम उपचार विकल्प

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वैश्विक स्तर पर श्रवण देखभाल सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। “वर्ल्ड रिपोर्ट ऑन हियरिंग” (2021) और “वर्ल्ड हेल्थ असेंबली रिजॉल्यूशन” के तहत, कान और सुनने की देखभाल को अधिक प्रभावी और सुलभ बनाने के लिए पहल की गई हैं। इनका उद्देश्य पूरी दुनिया में सुनने की समस्याओं से निपटने के लिए आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना है।
अच्छी बात यह है कि सुनने की समस्या के लिए अब कई आधुनिक उपचार मौजूद हैं। इनमें स्टेम सेल थेरेपी एक नई और संभावनाओं से भरी तकनीक है। इस उपचार में कान में स्टेम सेल के इंजेक्शन दिए जाते हैं, जो सुनने की क्षमता में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।
सुनने की समस्या एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती बनती जा रही है, लेकिन उचित रोकथाम, समय पर पहचान और पुनर्वास सेवाओं के जरिए इसे प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। सही कदम उठाकर भविष्य में करोड़ों लोगों की सुनने की क्षमता बचाई जा सकती है।
ध्वनि प्रदूषण से बदल रहा है जेनेटिक्स, जीन थेरेपी इसमे एक प्रभावी समाधान हो सकता है

डॉ. पांडेय बताते हैं ध्वनि प्रदूषण भी हियरिंग लॉस का बड़ा कारण है। अत्यधिक शोर के कारण कान के अंदर के बाल (हेयर सेल्स) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे सुनने की क्षमता कम हो जाती है। इसके अलावा जन्म के समय बच्चों में पीलिया होने से भी इसकी आशंका रहती है, जो जिसका जोखिम प्री मैच्योर बच्चों में ज्यादा रहता है।

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