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Cancer in Young Adults : 50 से पहले ही क्यों बढ़ रहा है Cancer का खतरा?

Cancer in Young Adults : एक समय था जब कोलोरेक्टल कैंसर (आंत का कैंसर) ज़्यादातर बुजुर्गों में होता था। पर अब एक नई और चिंताजनक बात सामने आ रही है: 50 साल से कम उम्र के लोगों में भी इसके मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं।

भारतJun 07, 2025 / 11:36 am

Manoj Kumar

Why Colorectal Cancer is Striking Before 50

Cancer in Young Adults : 50 से पहले ही क्यों बढ़ रहा है Cancer का खतरा? (फोटो सोर्स : Freepik)

Cancer in Young Adults : एक समय था जब कोलोरेक्टल कैंसर, जिसे आंत का कैंसर भी कहते हैं, मुख्य रूप से बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था। 50 या 60 की उम्र पार कर चुके लोगों में इसके होने की आशंका अधिक होती थी। लेकिन, हाल के वर्षों में एक चिंताजनक प्रवृत्ति सामने आई है: 50 साल से कम उम्र के लोगों में कोलोरेक्टल कैंसर (Cancer) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यह एक वैश्विक चिंता का विषय बन गया है, और चिकित्सकों व शोधकर्ताओं के लिए यह समझना महत्वपूर्ण हो गया है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है।

Cancer in Young Adults : बदलते पैटर्न की कहानी

पिछले कुछ दशकों में, कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) की घटनाओं में समग्र गिरावट देखी गई है, खासकर 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में। यह स्क्रीनिंग कार्यक्रमों और जीवनशैली में कुछ सुधारों का परिणाम है। हालांकि, इसी अवधि में, युवा वयस्कों में इसके मामलों में लगातार वृद्धि हुई है। अमेरिका में, 2010 से 2019 के बीच, 50 से कम उम्र के लोगों में कोलोरेक्टल कैंसर की दर में प्रति वर्ष लगभग 1-2% की वृद्धि हुई है। भारत में भी स्थिति बहुत अलग नहीं है; हालांकि सटीक आंकड़े हमेशा आसानी से उपलब्ध नहीं होते, लेकिन युवा रोगियों को देखने वाले ऑन्कोलॉजिस्ट इस प्रवृत्ति की पुष्टि करते हैं।
युवा वयस्कों में बढ़ती ‘कोलन कैंसर’ की समस्या

Cancer : जोखिम के बढ़ते कारण: आखिर क्यों?

इस सवाल का कोई एक सीधा जवाब नहीं है, लेकिन कई कारक मिलकर युवा पीढ़ी में इस बीमारी के बढ़ते जोखिम में योगदान कर रहे हैं:

आहार और जीवनशैली में बदलाव:

प्रसंस्कृत भोजन और लाल मांस का सेवन: आधुनिक आहार में अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, फास्ट फूड, और लाल व प्रसंस्कृत मांस का सेवन बढ़ गया है। इन खाद्य पदार्थों में संतृप्त वसा, चीनी, और कृत्रिम योजक (additives) अधिक होते हैं, जो आंत के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं और सूजन व कैंसर के विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
फाइबर की कमी: हमारे आहार से फल, सब्जियां, और साबुत अनाज जैसे फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन कम हो गया है। फाइबर पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने, मल त्याग को नियमित करने और हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। इसकी कमी से आंत में विषाक्त पदार्थ अधिक समय तक रह सकते हैं।
शारीरिक निष्क्रियता: गतिहीन जीवनशैली, जिसमें लंबे समय तक बैठना और कम शारीरिक गतिविधि शामिल है, मोटापे और इंसुलिन प्रतिरोध से जुड़ी है। ये दोनों कारक कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं।

मोटापा और मधुमेह: आजकल कम उम्र में भी मोटापे और टाइप 2 मधुमेह की घटनाएं बढ़ रही हैं। ये दोनों स्थितियां पुरानी सूजन, इंसुलिन प्रतिरोध और हार्मोनल असंतुलन से जुड़ी हैं, जो कैंसर कोशिकाओं के विकास के लिए अनुकूल वातावरण बना सकती हैं। वसा कोशिकाएं विभिन्न प्रकार के हार्मोन और साइटोकिन्स (cytokines) छोड़ती हैं जो कैंसर के विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
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आंत माइक्रोबायोम में परिवर्तन:

हमारी आंत में अरबों बैक्टीरिया होते हैं, जिन्हें आंत माइक्रोबायोम कहा जाता है। यह पाचन, प्रतिरक्षा और समग्र स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग, खराब आहार और तनाव इस माइक्रोबायोम के संतुलन को बिगाड़ सकते हैं। असंतुलित माइक्रोबायोम (जिसे डिस्बिओसिस कहते हैं) आंत में सूजन पैदा कर सकता है और कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है।

पर्यावरणीय कारक और प्रदूषण:

हवा और पानी में मौजूद कुछ प्रदूषक, साथ ही कुछ रसायनों के संपर्क में आने से भी कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। हालांकि, कोलोरेक्टल कैंसर से उनका सीधा संबंध अभी भी शोध का विषय है, लेकिन सामान्य तौर पर ये कारक शरीर में सूजन और डीएनए क्षति को बढ़ा सकते हैं।

जेनेटिक कारक:

हालांकि युवा आयु में कोलोरेक्टल कैंसर के अधिकांश मामले छिटपुट (sporadic) होते हैं, लेकिन कुछ लोगों में आनुवंशिक प्रवृत्ति भी हो सकती है। लिंच सिंड्रोम (Lynch syndrome) और फैमिलियल एडेनोमेटस पॉलीपोसिस (FAP) जैसी कुछ आनुवंशिक स्थितियां युवा आयु में कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम को काफी बढ़ा देती हैं। यदि परिवार में किसी को कम उम्र में कोलोरेक्टल कैंसर हुआ है, तो आनुवंशिक परामर्श और जांच महत्वपूर्ण हो सकती है।

जागरूकता की कमी और देर से निदान:

युवा लोगों में अक्सर यह धारणा होती है कि वे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के लिए बहुत छोटे हैं। इस वजह से, वे लक्षणों को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं या उन्हें बवासीर, IBS (Irritable Bowel Syndrome) या अन्य सामान्य पाचन संबंधी समस्याओं से जोड़ सकते हैं। इससे निदान में देरी होती है, और जब तक बीमारी का पता चलता है, तब तक वह अक्सर अधिक उन्नत अवस्था में पहुंच चुकी होती है, जिससे इलाज मुश्किल हो जाता है।

क्या करें? लक्षणों को पहचानें और जागरूक रहें

युवाओं में बढ़ते जोखिम को देखते हुए, यह आवश्यक है कि वे अपने शरीर के संकेतों के प्रति अधिक जागरूक रहें। कोलोरेक्टल कैंसर के कुछ सामान्य लक्षण शामिल हैं:
मल त्याग की आदतों में बदलाव (जैसे दस्त या कब्ज, जो कुछ दिनों से अधिक समय तक रहे)
मल में खून आना या काला, तार जैसा मल
पेट में लगातार ऐंठन, गैस या दर्द
अकारण वजन घटना
लगातार थकान और कमजोरी
यदि आप इनमें से किसी भी लक्षण का अनुभव करते हैं, खासकर यदि वे बने रहते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। शर्मिंदा न हों और अपने लक्षणों को खुल कर बताएं।

रोकथाम के लिए कदम

हालांकि इस बढ़ती प्रवृत्ति के कई कारक हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं, लेकिन हम अपनी जीवनशैली में बदलाव लाकर जोखिम को कम कर सकते हैं:

स्वस्थ आहार: फल, सब्जियां, साबुत अनाज और लीन प्रोटीन से भरपूर आहार लें। प्रसंस्कृत भोजन, लाल मांस और अत्यधिक चीनी से बचें।
नियमित व्यायाम: शारीरिक रूप से सक्रिय रहें।
स्वस्थ वजन बनाए रखें: मोटापे से बचें।
शराब का सेवन सीमित करें: शराब के अत्यधिक सेवन से बचें।
धूम्रपान छोड़ें: धूम्रपान कई तरह के कैंसर का कारण बनता है।
नियमित जांच: यदि परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर का इतिहास है या आपमें जोखिम कारक हैं, तो डॉक्टर की सलाह पर नियमित जांच (जैसे कोलोनोस्कोपी) के बारे में विचार करें, भले ही आप 50 से कम हों।

कोलोरेक्टल कैंसर अब केवल बुजुर्गों की बीमारी नहीं है। युवा आबादी में इसकी बढ़ती दर एक चेतावनी है जिसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। जागरूकता, समय पर निदान और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर हम इस गंभीर बीमारी के प्रभाव को कम कर सकते हैं।

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