जालोर जिले के रेवतड़ा निवासी मंजू मांडौत ने कहा, मौजूदा समय में जहां पाप में वृद्धि हुई हैं तो धर्म भी खूब बढ़ा है। भारत में अनेक स्थान पर ऋषभनाथ भगवान के जिनालय विद्यमान है इनमे कुछ अति प्राचीन है। जैन ग्रंथो के अनुसार लगभग एक हजार वर्षों तक तप करने के पश्चात ऋषभदेव को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और निर्वाण मोक्ष की प्राप्ति कैलाश पर्वत से हुई थी।
बालोतरा जिले के सिवाना निवासी ममता कानूंगा ने कहा, भगवान ऋषभदेव को प्रथम पारणा उनके पड़पौते ने करवाया। तब से वर्षीतप की परम्परा चल रही है। वैदिक दर्शन में ऋषभदेव एक महान राजा और महापुरुष थे।
बालोतरा जिले के सिवाना निवासी जया मुणोत ने कहा, इक्षु रस से पारणा करवाया। जैन पुराणों के अनुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज और महारानी मरुदेवी के पुत्र भगवान ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्ण नवमी को अयोध्या में हुआ था।
बालोतरा जिले के अरटवाड़ा निवासी अरूणा डूमावत ने कहा, भगवान ऋषभदेव ने पवित्र कला का ज्ञान दिया। जीवन जीने की कला सिखाई। उन्होंने पुरुषों की 72 कलाएं और स्त्रियों की 6 कलाएं सिखाईं। जैन पुराण साहित्य में असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प, कला का उपदेश ऋषभदेव ने दिया।
बालोतरा जिले के सिवाना निवासी संचल मेहता ने कहा, भगवान ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ। शिक्षा एवं गिनती का ज्ञान उनके समय से प्रारम्भ हुआ। वैदिक दर्शन में अथर्ववेद व अग्नि पुराण, मार्कंडेय पुराण और भी बहुत सारे ग्रंन्थो में ऋषभदेव का वर्णन आता है।
पाली मूल की पिंकी भंडारी ने कहा, तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर यानी जन्म मरण के चक्र से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर के पांच कल्याणक होते हैं।
पाली मूल की रीना भंडारी ने कहा, 108 इक्षुरस से भगवान को प्रथण पारणा करवाया। ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को अक्षर ज्ञान दिया तो सुंदरी को अंक विद्या का ज्ञान दिया। ब्राह्मी लिपि आज भी प्राचीनतम है। सभी पुत्रों को शस्त्र और शास्त्रों का ज्ञान दिया और प्रजा पालन करना सिखाया।