scriptVishnoi Community: हवन व यज्ञ के साथ 29 नियमों की पालना का संकल्प लेकर किया पाहल ग्रहण, की मानव मात्र के कल्याण की कामना | : With the resolve to follow 29 rules along with havan and yagya, took the first vow and prayed for the welfare of all mankind | Patrika News
हुबली

Vishnoi Community: हवन व यज्ञ के साथ 29 नियमों की पालना का संकल्प लेकर किया पाहल ग्रहण, की मानव मात्र के कल्याण की कामना

दक्षिण भारतीय विश्नोई समाज हुब्बल्ली के तत्वावधान में पाहल एवं होली मिलन समारोह शुक्रवार को हुब्बल्ली के पास बुदरसिंघी गांव स्थित दक्षिण भारतीय विश्नोई समाज के परिसर में आयोजित किया गया। इस दौरान हवन, यज्ञ एवं पाहल का आयोजन किया गया। यज्ञ व पाहल के माध्यम से मानव मात्र के कल्याण की कामना की गई। हुब्बल्ली एवं आसपास के जिलों से भी समाज के लोग समारोह में शामिल हुए।

हुबलीMar 14, 2025 / 12:30 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

कर्नाटक में हुब्बल्ली के पास बुदरसिंघी गांव स्थित दक्षिण भारतीय विश्नोई समाज के परिसर में शुक्रवार को आयोजित होली मिलन समारोह में पाहल ग्रहण करते विश्नोई समाज के लोग।

कर्नाटक में हुब्बल्ली के पास बुदरसिंघी गांव स्थित दक्षिण भारतीय विश्नोई समाज के परिसर में शुक्रवार को आयोजित होली मिलन समारोह में पाहल ग्रहण करते विश्नोई समाज के लोग।

पाहल की महत्ता विश्नोई पंथ में अति महत्वपूर्ण
दक्षिण भारतीय विश्नोई समाज हुब्बल्ली के अध्यक्ष बीरबल विश्नोई साहू ने बताया कि होली के पाहल की महत्ता विश्नोई पंथ में अति महत्वपूर्ण मानी गई है। विष्णु भगवान उपासक व गुरु जम्भेश्वर भगवान के अनुयायी मानने वाले विश्नोई पंथ के लोग जीव दया व पर्यावरण संरक्षण के हितैषी रहे हैं। धुलंडी के दिन सुबह मंदिरों में हवन करके पाहल लेते है उसके बाद ही भोजन ग्रहण करते है। गुरु जम्भेश्वर महाराज ने अपने शब्दवाणी में इसका विशेष उल्लेख किया। इसकी मान्यता हैं कि यह आयोजन भक्त प्रहलाद को मारने के लिए किया था। विश्नोई समाज के प्रवर्तक गुरु जम्भेश्वर महाराज विष्णु भगवान के अवतार थे। जिस वक्त लोग होली मनाते हैं तब विश्नोई समाज के लोग मंदिर में सामूहिक हवन कर पाहल (जांभोजी के बताए 120 शब्दों से पाठ करते हैं) ग्रहण करते हैं। पर्यावरण प्रेमी यह समाज होली में हरे पेड़ या लकड़ी को थोक में जलाना नीति नियम विरुद्ध मानता है। विश्नोई समाज पर्यावरण का पक्षधर रहा है।
विश्नोई धर्म का मुख्य मंदिर मुक्तिधाम मुकाम
विश्नोई समाज के लोगों ने कहा कि गुरु जम्भेश्वर ने अपने अनुयायियों को 29 नियमों की पालना करने को कहा था। राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखा में विश्नोई धर्म का मुख्य मंदिर मुक्तिधाम मुकाम है। यहीं पर गुरु जंभेश्वर का समाधि स्थल है। इस जगह पर हर साल मेला लगता है। विश्नोई संप्रदाय में खेजड़ी को पवित्र पेड़ माना जाता है। 1730 में राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली नामक स्थान पर जोधपुर के महाराजा की ओर से हरे पेड़ों को काटने से बचाने के लिए अमृता देवी ने अपनी तीन बेटियों आसू, रत्नी और भागू के साथ अपने प्राण त्याग दिए। उनके साथ 363 से अधिक अन्य विश्नोई खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए शहीद हो गए। विश्नोई समाज में अमृता देवी को शहीद का दर्जा दिया गया है। जहां-जहां विश्नोई समाज बसा है। वहां जानवरों की रक्षा के लिए वह अपनी जान तक दे देते है।
वन्यजीव प्रेमी है विश्नोई समाज
विश्नोई पंथ की स्थापना गुरु जाम्भोजी ने की थी। गुरु जंभेश्वर ने गोपालन किया। वे हरे वृक्षों को काटने एवं जीवों की हत्या को पाप मानते थे। वे हमेशा पेड़-पौधों, वन एवं वन्य जीवों के रक्षा करने का संदेश देते थे। समाज के लोगों ने कहा कि होली पर पुराने गिले शिकवे, मनमुटाव व सामाजिक समस्याएं सुलझाई जाती हैं। हवन पाहल के बाद होली के दिन प्रहलाद चरित्र सुनाया जाता है। जांभाणी साहित्य के अनुसार तब के प्रहलाद पंथ के अनुयायी ही आज के विश्नोई समाज के लोग हैं। जो भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानते हैं। जो व्यक्ति घर में पाहल नहीं करते हैं, वे मंदिर में सामूहिक होने वाले पाहल से पवित्र जल लाकर उसे ग्रहण करते हैं। वहीं अगर विश्नोई समाज के लोग व्यवसाय को लेकर प्रवास में रहते है, तो भी वहां पर उनके घरों में पाहल बनाकर इसको लिया जाता है।

Hindi News / Hubli / Vishnoi Community: हवन व यज्ञ के साथ 29 नियमों की पालना का संकल्प लेकर किया पाहल ग्रहण, की मानव मात्र के कल्याण की कामना

ट्रेंडिंग वीडियो