विश्नोई समाज के लोगों ने कहा कि गुरु जम्भेश्वर ने अपने अनुयायियों को 29 नियमों की पालना करने को कहा था। राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखा में विश्नोई धर्म का मुख्य मंदिर मुक्तिधाम मुकाम है। यहीं पर गुरु जंभेश्वर का समाधि स्थल है। इस जगह पर हर साल मेला लगता है। विश्नोई संप्रदाय में खेजड़ी को पवित्र पेड़ माना जाता है। 1730 में राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली नामक स्थान पर जोधपुर के महाराजा की ओर से हरे पेड़ों को काटने से बचाने के लिए अमृता देवी ने अपनी तीन बेटियों आसू, रत्नी और भागू के साथ अपने प्राण त्याग दिए। उनके साथ 363 से अधिक अन्य विश्नोई खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए शहीद हो गए। विश्नोई समाज में अमृता देवी को शहीद का दर्जा दिया गया है। जहां-जहां विश्नोई समाज बसा है। वहां जानवरों की रक्षा के लिए वह अपनी जान तक दे देते है।
विश्नोई पंथ की स्थापना गुरु जाम्भोजी ने की थी। गुरु जंभेश्वर ने गोपालन किया। वे हरे वृक्षों को काटने एवं जीवों की हत्या को पाप मानते थे। वे हमेशा पेड़-पौधों, वन एवं वन्य जीवों के रक्षा करने का संदेश देते थे। समाज के लोगों ने कहा कि होली पर पुराने गिले शिकवे, मनमुटाव व सामाजिक समस्याएं सुलझाई जाती हैं। हवन पाहल के बाद होली के दिन प्रहलाद चरित्र सुनाया जाता है। जांभाणी साहित्य के अनुसार तब के प्रहलाद पंथ के अनुयायी ही आज के विश्नोई समाज के लोग हैं। जो भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानते हैं। जो व्यक्ति घर में पाहल नहीं करते हैं, वे मंदिर में सामूहिक होने वाले पाहल से पवित्र जल लाकर उसे ग्रहण करते हैं। वहीं अगर विश्नोई समाज के लोग व्यवसाय को लेकर प्रवास में रहते है, तो भी वहां पर उनके घरों में पाहल बनाकर इसको लिया जाता है।