सरपंच: अपनी जन्मभूमि राजस्थान से निकलकर कर्मभूमि कर्नाटक को बनाया। लेकिन प्रवासी आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। कर्नाटक को कर्मभूमि बनाने के बावजूद राजस्थान के लोगों का गांवों के प्रति स्नेह बना हुआ है। कई प्रवासी भी राजस्थान में जनता के सहयोग से जनप्रतिनिधि बने। ऐसे में आज भी कई प्रवासी है जो कर्मभूमि के साथ अपनी जन्मभूमि को भी बखूबी संभाल रहे हैं। कोई प्रवासी गांव के सरपंच के नाते तो कोई जिला परिषद सदस्य व पंचायत समिति सदस्य के नाते अपने इलाके में विकास की इबारत लिख रहे हैं। जब भी प्रवासी अपनी जन्मभूमि पर आते हैं तो वहां छोटे-बड़े विकास कार्य में जरूर सहयोग करते हैं। इस तरह माटी का कर्ज निभा रहेे हैं और गांवों के विकास में सहभागी
बन रहे हैं। प्रवासियों का कोरोना के समय भी सहयोग सराहनीय रहा था।
सरपंच: सिरोही जिले के सिलदर ग्राम पंचायत में विकास के खूब काम करवाए गए है। गांव में अस्पताल, स्कूल, सड़कों का निर्माण करवाया गया है। इसके साथ ही कोरोना महामारी के समय क्षेत्र में सहयोग किया गया। सिलदर ग्राम पंचायत में सिलदर के साथ ही रामपुरा व रोड़ा खेड़ा गांव भी शामिल है। इन तीनों गावों में हर गली-चौराहे पर रोड लाइटें लगवाई हैं। इससे गांव रोशन हुए हैं। गांव में अस्पताल का विस्तार होने से आसपास के ग्रामीणों को भी इलाज की सुविधा सुलभ हो सकी है। सिरोही जिले के मडिया निवासी एवं दुबई प्रवासी रायचन्द सोनी के सहयोग से अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त स्कूल का निर्माण करवाया जा रहा है। इसके लिए पंचायत ने पांच बीघा जमीन उपलब्ध करवाई है।
सरपंच: अगर कुछ करने का हौसला हो तो गांव की सूरत बदली जा सकती है। गांव में ढांचागत सुविधाएं, जैसे-शहर से जोडऩे वाली सड़कें, पक्के मकान, बिजली, पानी, अस्पताल, स्कूल और शौचालय की सुविधा विकसित करने की दिशा में काम किया जा सकता है।
सरपंच: उद्देश्य बेहतर हो तो जनसेवा के लिए राजनीति से बड़ा कोई माध्यम नहीं हो सकता। पंचायत राज में महिलाओं केे लिए सीटें आरक्षित होने से महिलाओं को निश्चित ही आगे बढऩे का अवसर मिला है। इसके बाद से महिलाओं की भागीदारी लगातार होने लगी है।
सरपंच: अगर सरकारी योजनाओं को सही ढंग से अपनाएं तो गांव खुद ही बदल जाएंगे। बस, दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए। गांव के विकास को लक्ष्य बनाकर यदि काम किया जाएं तो गांवों की कायापलट हो सकती है।
सरपंच: महिला शिक्षा पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए। मैं खुद अधिक पढ़-लिख नहीं सकी लेकिन नई पीढ़ी को मैं पढऩे की लगातार प्रेरणा देती रही हूं। पढ़ी-लिखी महिला अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक रह सकती है। सिलदर गांव में बालिकाओं के लिए अलग से बारहवीं स्कूल होने से बालिकाएं बेहिचक स्कूल जा सकती है।