कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को ये अधिकार है कि वह अपने आप को कब आजाद माने। कोई व्यक्ति वर्ष 1947 से अंग्रेजों की आजादी के बाद भी स्वयं को गुलाम महसूस करता है तो वे उसके व्यक्तिगत विचार हो सकते हैं। जो तब तक मानहानि की कोटि में नहीं रखे जा सकते, जब तक कि किसी दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन न करें। याचिका में कंगना के बयान को स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वाले अमर सेनानियों का अपमान बताया था।
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जबलपुर के अधिवक्ता अमित साहू ने अभिनेत्री व बीजेपी सांसद कंगना पर 2021 में दिए गए बयान को अपमानजनक बताते हुए परिवाद दायर किया था। कंगना ने अपने बयान में कहा था कि 1947 में भारत को मिली आजादी, आजादी नहीं भीख थी। असली आजादी तो 2014 में मिली, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इसे आजादी के लिए शहादत देने वालों का अपमान बताया था।