जयपुर. राजधानी सहित प्रदेशभर में हजारों भू-खंडधारी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। वर्ष 2009 से पहले की निजी खातेदारी और गृह निर्माण सहकारी समितियों की आवासीय योजनाओं में सड़क, सीवरेज, पेयजल और बिजली जैसे आंतरिक विकास कार्य संबंधित विकास प्राधिकरणों और नगर विकास न्यासों को करने थे। इसके लिए भू-खंडधारियों से विकास शुल्क के रूप में करोड़ों रुपये पहले ही जमा करवा लिए गए थे। अथॉरिटी ने उस समय विकास कार्य नहीं किया। अब लागत दो से तीन गुना बढ़ गई है, ऐसे में अफसर सिर्फ जमा राशि के अनुरूप सीमित क्षेत्र में ही काम करने पर आमादा हैं।
गंभीर यह है कि इन योजनाओं में भू-खंड बेचकर डवलपर पहले ही निकल चुके हैं। वहीं, संबंधित अथॉरिटी ने सरकार के एक पुराने आदेश का हवाला देते हुए जिम्मेदारी से हाथ खींच लिए हैं। इससे हजारों भू-खंडधारी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। लोग इन योजनाओं में रहना तो चाहते हैं, लेकिन सड़क, पानी और सीवरेज जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं होने के कारण वहां रहना संभव नहीं हो पा रहा।
भू-खंडधारियों की क्या गलती? आदेश: निजी खातेदारी की टाउनशिप योजनाओं (जिनमें आंतरिक विकास शुल्क वसूल किया गया है) में टाउनशिप पॉलिसी के तहत जमा विकास शुल्क राशि तक विकास कार्य कराया जाए। नगरीय विकास विभाग ने जनवरी, 2022 में यह पत्र जारी किया था।
हकीकत: निजी खातेदारी योजना के नियमन के समय भू-खंडधारियों से निर्धारित विकास शुल्क लिया गया। उस समय विकास शुल्क की दर करीब 250 रुपए प्रति वर्गगज थी। तय हुआ कि संबंधित अथॉरिटी ही उस योजना में डवलपमेंट कराएगी। उस समय वहां आबादी नहीं बसी थी तो विकास कार्य नहीं कराए गए। अब भू-खंडधारी वहां बसना चाह रहे हैं, लेकिन सुविधाएं नहीं है। सरकार और अथॉरिटी तर्क दे रही है कि विकास कार्य की लागत तीन गुना बढ़ गई है। बाकी का पैसा कौन देगा। चर्चा यही है कि आखिर इसमें भू-खंडधारियों की क्या गलती है?
फैक्ट फाइल -500 से अधिक निजी खातेदारी व सहकारी समिति की योजनाएं स्वीकृत हुई वर्ष 2000 से 2009 के बीच -120 निजी योजनाएं केवल जयपुर में हैं -700 से 900 रुपए प्रति वर्गगज पहुंची डवलपमेंट की दर
(अथॉरिटी व डवलपर्स के मुताबिक)