क्या है गैमोफोबिया?
गैमोफोबिया ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘गामोस’ और ‘फोबोस’ से मिलकर बना है। ‘गामोस’ का अर्थ विवाह है। जबकि ‘फोबोस’ का मतलब डर होता है। इसका मतलब हुआ शादी का डर। गैमोफोबिया को कमिटमेंट के डर के रूप में भी जाना जाता है। यह एक आम फोबिया है, जो खासकर लड़कों में होता है। शादी के साथ आने वाले व्यक्तिगत, वित्तीय और सामाजिक जिम्मेदारियों के कारण लड़के शादी से घबराते हैं।
किसी भी काम के कमिटमेंट को करने में असमर्थता।
विचारों पर कंट्रोल ना कर पाना, आक्रामक होना।
शादी के ख्याल से ही डर जाना।
चिंता, एंग्जायटी और स्ट्रेस होना।
खुद पर कंट्रोल खो देना।
सही पार्टनर ना मिल पाने का भय होना।
भावुक होकर रोने लगना।
इनके अलावा शादी के बारे में सोचकर सीने में दर्द, जी मिचलाना, सांस लेने में दिक्कत, बेहोशी भी लक्षण हो सकते हैं।
मनोचिकित्सक डॉ अनिता गौतम ने बताया कि गैमोफोबिया यानी रिश्तों के प्रति गहरी आशंका या डर, एक मानसिक स्थिति है जिससे उबरना पूरी तरह संभव है। आजकल इसकी पहचान और इलाज दोनों ही काफी बेहतर हो चुके हैं। बिहेवियरल थेरपी, खासकर कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी), इसमें बेहद कारगर मानी जाती है। इसके अलावा हिप्नोथेरेपी के जरिए मन को शांत कर, आंतरिक उलझनों से बाहर निकलने में मदद मिलती है। कई मामलों में जरूरत हो तो दवाओं का सहारा लिया जा सकता है।
समाजशास्त्री रश्मि ओझा ने बताया कि वर्तमान दौर में शादी के बाद जिस तरह के डरावने केस सामने आ रहे हैं, उसे लेकर भविष्य की अनिश्चिंतता को लेकर डरना लाजमी है। लुटेरी दुल्हन, दहेज के झूठे केस तो कभी एक्सट्रा मेरिटल अफेयर के मामले आमबात हो गई हैं। इसके अलावा रिश्तों को निभाने को लेकर भी एक फीयर फैक्टर बना रहता है। गैमोफोबिया से जूझ रहे लोगों के लिए सबसे जरूरी है कि वे अपने अनुभवों, भावनाओं और डर को किसी भरोसेमंद व्यक्ति या विशेषज्ञ से साझा करें। बात करने से मन का बोझ हल्का होता है और समाधान की राह भी खुलती है।