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जयपुर

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991: SC के फैसले का गहलोत ने किया स्वागत, बोले- ‘इस आदेश से शांति कायम होगी…’

Places Of Worship Act 1991: ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991’ पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने इस पर टिप्पणी की है।

जयपुरDec 12, 2024 / 09:39 pm

Nirmal Pareek

Former CM Ashok Gehlot
Places Of Worship Act 1991: ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने इस पर टिप्पणी की है। उन्होने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर धार्मिक स्थलों पर नए वाद दायर ना कर सकने एवं कोई भी अदालती फैसला देने पर रोक लगाने का आदेश स्वागतयोग्य है।

‘SC के फैसले से शांति कायम होगी’

पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर धार्मिक स्थलों पर नए वाद दायर ना कर सकने एवं कोई भी अदालती फैसला देने पर रोक लगाने का आदेश स्वागतयोग्य है। पिछले कुछ समय से देश में सांप्रदायिक ताकतों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए ऐसी याचिकाएं लगाई जा रहीं थीं जिससे देश में तनाव पैदा हो रहा था। ऐसे आदेश से इन शरारती तत्वों पर रोक लगेगी एवं शांति कायम होगी।

जस्टिस संजीव खन्ना ने क्या कहा?

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991’ के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा है कि जब तक इस मामले पर केंद्र सरकार का जवाब दाखिल नहीं हो जाता, तब तक इस पर सुनवाई नहीं होगी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अब तक जवाब दाखिल नहीं किया है, जिसके बाद सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जवाब जल्द दाखिल किया जाएगा।
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केंद्र सरकार से 4 हफ्तों में मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगली सुनवाई तक नई याचिका दायर की जा सकती है लेकिन उन्हें रजिस्टर नहीं किया जाएगा। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की उस मांग को ठुकरा दिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि देश की अलग-अलग अदालतों में इससे जुड़े जो मामले चल रहे है उनकी सुनवाई पर रोक लगाई जाए। इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र सरकार को 4 हफ्तों में जवाब दाखिल करने को भी कहा है।

‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991’ क्या है?

बता दें कि यह कानून 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थलों के स्वरूप को बदलने या उन्हें वापस पाने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाता है। यह 15 अगस्त, 1947 को जैसी थी, वैसी ही उनकी धार्मिक स्थिति बनाए रखने का आदेश देता है। इसमें इस उद्देश्य से जुड़े या आकस्मिक मुद्दों को संबोधित करने के प्रावधान शामिल हैं।

अजमेर दरगाह पर भी लगी है याचिका

गौरतलब है कि हाल ही में राजस्थान के अजमेर में भी सिविल न्यायालय पश्चिम ने हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा अजमेर दरगाह में मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका लगाई थी। न्यायालय ने इस पर सुनावाई करते हुए इससे संबंधित लोगों को नोटिस जारी किए थे। कोर्ट ने अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी अजमेर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को नोटिस देकर पक्ष रखने को भी कहा था। इस मामले में 20 दिसंबर को अगली सुनवाई होनी है। अब देखना रोचक होगा की सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अजमेर सिविल न्यायालय पश्चिम इस मामले में क्या कार्रवाई करता है।

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