Jaipur Literature Festival 2025: ‘फ्रेक्चर्ड वर्ल्ड’ में दो यूनिवर्स का सफर… एक में रेस, दूसरा रिवर्स
हमने मान लिया कि वे गांव की पाठशाला में पढ़ाने की चीज है। 40 साल से कम के इंसान की जुबान में आज कहावतें-दोहे नहीं हैं। हमारे दोहे 700-800 साल पुराने हैं, लेकिन इन्हें गौर से सुनते हैं तो लगता है कि पिछले महीने ही लिखे गए हैं। ‘सीपियां’ किताब में कबीर, रहीम, रसखान, अमीर खुसरो के दोहों के संकलन सीपियां में जावेद अख्तर ने इनके अर्थ को साधारण शब्दों में समझाया है। जावेद ने कुछ दोहे सुना कर आज उनकी प्रासंगिकता बताई।राम सच्चाई और ईमानदारी का प्रतीक
‘रहिमन मुश्किल आ पड़ी, टेढ़े दोऊ काम सीधे से जग न मिले, उलटे मिले न राम’ इस दोहे में राम सच्चाई और ईमानदारी का प्रतीक हैं और दुनिया में पैंतरे बदलने पड़ते हैं। आज भी हमारे सामने यही मुश्किल है कि किधर जाएं।…तो जो समस्या 500 साल पहले थी, वही आज भी है।JLF 2025: 5 दिवसीय ‘जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल’ की हुई शानदार शुरुआत, साहित्य के महाकुंभ में होगा शाही शब्द स्नान
शब्द सम्हारे बोलिए… दोहे के जरिए उन्होंने कहा कि शब्द का जीवन में गहरा असर है तो कागा काकू धन हरे…दोहे से उन्होंने समझाया कि मीठी आवाज से लोगों को पास ला सकते हैं। रहिमन धागा…के लिए कहा कि इसमें रहीम ने शर्त डाली कि प्रेम का धागा एकदम नहीं तोड़ना चाहिए।‘रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्राण। हिन्दुआन को वेद सम, जमनहिं प्रकट कुरान’
जब रहीम और मानसिंह बनारस में तुलसीदासजी से मिलने जाते थे, तो बादशाह अकबर ने उनसे पूछा कि रोज-रोज क्यों जाते हो, तब रहीम ने तुलसीदासजी की बड़ाई करते हुए यह दोहा कहा। यह तारीफ बताती है कि हमारे भीतर कितना इत्मीनान है। फिर यहां तो एक मुसलमान ने हिंदू की तारीफ की है। उन्होंने कहा कि जिन्हें कविता नहीं आती, वह हिंदू-मुसलमान होता है।