Opinion : मासिक धर्म के दिनों में करनी होगी सेहत की चिंता
महिलाओं की सेहत को लेकर देश-दुनिया में चल रहे तमाम जागरूकता कार्यक्रमों के बीच यह जानकारी चौंकाने व चिंतित करने वाली है कि दक्षिण एशियाई देशों की ज्यादातर महिलाएं पीरियड्स के दौरान ऑफिस जाने और बाहर के कामों से बचती हैं। लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि भारत और उसके पड़ोसी […]
महिलाओं की सेहत को लेकर देश-दुनिया में चल रहे तमाम जागरूकता कार्यक्रमों के बीच यह जानकारी चौंकाने व चिंतित करने वाली है कि दक्षिण एशियाई देशों की ज्यादातर महिलाएं पीरियड्स के दौरान ऑफिस जाने और बाहर के कामों से बचती हैं। लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि भारत और उसके पड़ोसी देशों में तो कामकाजी महिलाएं ऐसा इसलिए करती हैं, क्योंकि उन्हें ऑफिस में घर जैसा साफ-सुथरा माहौल नहीं मिलता है। यानी मासिक धर्म में दर्द के दौरान न तो रेस्टरूम उपलब्ध होता और न ही हाइजीनिक चीजें मिल पातीं। ऐसा नहीं है कि महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर चिंतित नहीं है। हमारे देश में पिछले एक दशक से पीरियड्स लीव की मांग की जा रही है। बिहार के बाद राजस्थान की महिला कर्मचारियों ने भी मासिक धर्म के दौरान अवकाश या वर्क फ्रॉम होम की मांग उठाई है। उत्तर प्रदेश में महिला शिक्षक संघ एक दशक से इन दिनों में अवकाश की मांग कर रहा है। फिलहाल अभी सिर्फ बिहार और केरल में पीरियड्स लीव का प्रावधान है।
जबकि चिंताजनक तथ्य यह भी है कि देश में करीब 40 फीसदी बच्चियां पीरियड्स के दौरान स्कूल सिर्फ इसलिए नहीं जातीं क्योंकि स्कूलों में न तो साफ-सुथरे वॉशरूम हैं और न ही साफ पानी व सेनेटरी नैपकिन की व्यवस्था। देश में महिला सशक्तीकरण की बातें करने वाले महिला-पुरुषों का एक बड़ा तबका भी पीरियड्स लीव का विरोध करता है। तर्क दिया जाता है कि पहले ही मातृत्व अवकाश बढ़ाकर 26 सप्ताह का किया हुआ है। ऐसे में अगर साल की 36 छुट्टियां और बढ़ जाएंगी तो महिलाओं को नौकरी मिलने में दिक्कत आ सकती है। लेकिन चिंता पहले सेहत की ही करनी होगी। यह भी देखने में आता है कि देश की करोड़ों कामकाजी महिलाएं उन दिनों में सिर्फ इसलिए दर्द की दवाइयां खाकर रह जाती हैं कि कहीं उनका वेतन नहीं काट लिया जाए। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार औसतन 14 फीसदी महिलाएं ही पीरियड्स में अवकाश लेती हैं। वहीं 80 फीसदी इस दौरान छुट्टी का सही कारण छुपाती हैं।
मैकिन्से हेल्थ इंस्टीट्यूट और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम सेंटर फॉर हेल्थ एंड हेल्थकेयर ने अपने संयुक्त अध्ययन में कहा है कि अगर कंपनियां महिलाओं की पीरियड्स के दौरान स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं पर ध्यान दें तो 22 फीसदी तक उत्पादन और 18 फीसदी तक ज्यादा मुनाफा कमा सकती हैं। कंपनियां ज्यादा उत्पादन के साथ मुनाफा तो चाहती हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर चुप्पी साध लेती हैं। उन्हें तय करना होगा कि वे मुनाफा चाहती हैं या फिर महिलाओं से बेमन काम करा प्रोडक्टिविटी को प्रभावित करना चाहती हैं।
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