इसलिए है एक और रास्ते की दरकार
- भूकम्प और तूफान जैसी प्राकृतिक घटनाओं के समय हर बार ऐतिहासिक सोनार किले में वैकल्पिक मार्ग की जरूरत महसूस की जाती है। जब भी कभी प्राकृतिक आपदा हुई तो दुर्ग में राहत व बचाव कार्य के लिए वैकल्पिक मार्ग की जरूरत शिद्दत से महसूस की जाती है।
- पर्यटन सीजन के चरम काल के दौरान कम से कम 30 दिन ऐसे होते हैं, जब इस दुर्ग की घाटियों पर पैदल चलने वालों का जाम लग जाता है और जाम के हालात बन जाते हैं। उस समय छोटी-सी भगदड़ की घटना संगीन हो सकती है।
- पर्यटन सीजन के पीक पर होने के दौरान दुर्ग में भ्रमण पर आए किसी सैलानी या रहवासी का स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर उसे दुर्ग से नीचे उतारना आसान नहीं रह जाता। वैकल्पिक मार्ग होने पर आपातकालीन सुविधा तत्काल उपलब्ध करवाई जा सकती है।
- किसी सैलानी की तबीयत बिगड़ जाने या भूकम्प, अतिवृष्टि अथवा तेज तूफान आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण अगर कभी मुख्य रास्ता बंद हो गया तो राहत व बचाव कार्य करने के लिए वैकल्पिक मार्ग की सबसे ज्यादा जरूरत है।
पूर्व में की जा चुकी है कवायद
राजस्थान के मुख्य सचिव सुधांश पंत ने कुछ साल पहले केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर रहते हुए सोनार दुर्ग से वैकल्पिक मार्ग के लिए प्रयास करने के संबंध में जिला प्रशासन को प्रेरित किया था। तब जिला प्रशासन ने एक प्रस्ताव बना कर एएसआइ को भिजवाया था लेकिन उसने इसे खारिज कर दिया था।
-कई साल पहले बॉम्बे आईआईटी जैसे तकनीकी संस्थान की रिपोर्ट में भी इसकी आवश्यकता जताई जा चुकी है।
द्वितीय द्वार खोलने पर चर्चा
जैसलमेर सर्किट हाउस में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारियों के साथ सोनार किला की व्यवस्थाओं को लेकर अहम चर्चा की। मुख्य विषय किले के द्वितीय द्वार को खोलने और पर्यटकों की आवाजाही को बेहतर बनाने पर केंद्रित था। बैठक में किले की ऐतिहासिक संरचना को सुरक्षित रखते हुए सुविधाओं के विस्तार और भीड़ प्रबंधन पर विचार किया गया, जिससे पर्यटकों को अधिक सुगम अनुभव मिल सके।
- गजेन्द्रसिंह शेखावत, केंद्रीय पर्यटन, कला एवं संस्कृति मंत्री