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जैसलमेर

सूखते कुएं और तालाब : उपेक्षा के शिकार हुए पारंपरिक जल स्रोत

मरुप्रदेश के शुष्क भूभाग में कुएं और तालाब केवल जलस्रोत नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत भी हैं।

जैसलमेरMar 24, 2025 / 08:23 pm

Deepak Vyas

jsm
मरुप्रदेश के शुष्क भूभाग में कुएं और तालाब केवल जलस्रोत नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत भी हैं। फलसूण्ड और आसपास के गांवों में कभी ये जल स्रोत पूरे गांव की प्यास बुझाते थे, लेकिन अब वे सूख रहे हैं और गंदगी की भेंट चढ़ गए हैं। सरकारी योजनाएं अब तक गांवों तक प्रभावी रूप से नहीं पहुंच पाई हैं, जिससे ग्रामीण गर्मियों में टैंकरों से महंगे दामों में पानी खरीदने को मजबूर हैं। हालांकि, कुछ जागरूक किसानों ने वर्षा जल संरक्षण के लिए खेतों में डिग्गियां बनाई हैं, लेकिन यह समाधान पर्याप्त नहीं। समाज और प्रशासन को मिलकर इन पारंपरिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना होगा, ताकि आने वाली पीढिय़ों को जल संकट से बचाया जा सके।
कभी गांवों की जीवनरेखा माने जाने वाले कुएं और तालाब अब वीरान हो चुके हैं। फलसूण्ड सहित 11 ग्राम पंचायतों में मौजूद ये परंपरागत जल स्रोत देखरेख के अभाव में सूख चुके हैं या गंदगी से पटे पड़े हैं। पहले इन कुओं से गांव के लोग पीने, नहाने और पशुओं को पानी पिलाने के लिए पानी निकालते थे, लेकिन अब जल जीवन मिशन के तहत जीएलआर से जलापूर्ति होने लगी तो लोग इन्हें भूल गए। अब हालत यह है कि गर्मी के दिनों में जब जल संकट गहराता है, तब इन सूखे जल स्रोतों की याद आती है।

भुला गए कुओं का महत्व

पहले तालाब और कुएं न केवल जल आपूर्ति का जरिया थे, बल्कि सामाजिक मेल-जोल का केंद्र भी थे। महिलाएं यहां पानी भरने आती थीं, बच्चे तालाबों में खेलते थे, और बुजुर्ग यहां बैठकर दिन गुजारते थे। लेकिन अब, पाइपलाइन से घरों तक पानी पहुंचने के बाद लोग इन जल स्रोतों से दूर हो गए। फलस्वरूप, ये कुएं अब झाडिय़ों और कचरे से पट चुके हैं, और तालाब भी सूख चुके हैं।

ग्रामीणों ने जल संरक्षण की पहल

कुछ ग्रामीणों ने समस्या को समझते हुए अपने खेतों में डिग्गियों का निर्माण किया है, ताकि बारिश का पानी संचित किया जा सके। इससे गर्मी में उनके पशुओं को पानी मिल जाता है और टैंकरों पर निर्भरता घटती है। बावजूद इसके यह उपाय पूरे गांव के जल संकट का समाधान नहीं है।

दूर-दराज गांवों तक नहीं पहुंचीं योजनाओं की जानकारी

जल जीवन मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन और अटल भूजल योजना जैसी सरकारी योजनाएं कागजों तक सीमित रह गई हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य हर घर तक स्वच्छ पेयजल पहुंचाना और जल स्रोतों का संरक्षण करना है। हकीकत यह है कि फलसूण्ड और आसपास के कई गांवों तक ये योजनाएं नहीं पहुंचीं। इसके चलते ग्रामीणों को महंगे टैंकरों से पानी खरीदने की मजबूरी बनी हुई है।

करना होगा प्रयास

हमारे गांवों में बने कुएं और

तालाब हमारी पहचान थे, लेकिन अब वे इतिहास बनते जा रहे हैं। गर्मी में हमें टैंकरों से पानी खरीदना पड़ता है, जो बहुत महंगा पड़ता है। प्रशासन को इन जल स्रोतों को फिर से जिंदा करना चाहिए।
मानाराम, ग्रामीण, फलसूण्ड
तो निकलेगा हाल

हमने अपने खेतों में डिग्गियां बनाई हैं, ताकि बारिश का पानी इक_ा कर सकें। इससे हमारे पशुओं को राहत मिलती है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है। अगर पुराने जल स्रोतों को फिर से जिंदा किया जाए, तो जल संकट का हल निकल सकता है।
भीखाराम, किसान

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