भुला गए कुओं का महत्व
पहले तालाब और कुएं न केवल जल आपूर्ति का जरिया थे, बल्कि सामाजिक मेल-जोल का केंद्र भी थे। महिलाएं यहां पानी भरने आती थीं, बच्चे तालाबों में खेलते थे, और बुजुर्ग यहां बैठकर दिन गुजारते थे। लेकिन अब, पाइपलाइन से घरों तक पानी पहुंचने के बाद लोग इन जल स्रोतों से दूर हो गए। फलस्वरूप, ये कुएं अब झाडिय़ों और कचरे से पट चुके हैं, और तालाब भी सूख चुके हैं।ग्रामीणों ने जल संरक्षण की पहल
कुछ ग्रामीणों ने समस्या को समझते हुए अपने खेतों में डिग्गियों का निर्माण किया है, ताकि बारिश का पानी संचित किया जा सके। इससे गर्मी में उनके पशुओं को पानी मिल जाता है और टैंकरों पर निर्भरता घटती है। बावजूद इसके यह उपाय पूरे गांव के जल संकट का समाधान नहीं है।दूर-दराज गांवों तक नहीं पहुंचीं योजनाओं की जानकारी
जल जीवन मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन और अटल भूजल योजना जैसी सरकारी योजनाएं कागजों तक सीमित रह गई हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य हर घर तक स्वच्छ पेयजल पहुंचाना और जल स्रोतों का संरक्षण करना है। हकीकत यह है कि फलसूण्ड और आसपास के कई गांवों तक ये योजनाएं नहीं पहुंचीं। इसके चलते ग्रामीणों को महंगे टैंकरों से पानी खरीदने की मजबूरी बनी हुई है।करना होगा प्रयास
हमारे गांवों में बने कुएं और तालाब हमारी पहचान थे, लेकिन अब वे इतिहास बनते जा रहे हैं। गर्मी में हमें टैंकरों से पानी खरीदना पड़ता है, जो बहुत महंगा पड़ता है। प्रशासन को इन जल स्रोतों को फिर से जिंदा करना चाहिए।मानाराम, ग्रामीण, फलसूण्ड
भीखाराम, किसान