scriptमहंगाई ने छीना लोक उत्सवों का रंग: होली का रंग फीका, चंग की गूंज भी मंद | Inflation has taken away the colors of folk festivals: Holi colors have faded, the echo of Chang has also faded | Patrika News
जैसलमेर

महंगाई ने छीना लोक उत्सवों का रंग: होली का रंग फीका, चंग की गूंज भी मंद

फाल्गुन माह का आरंभ होते ही पहले गांवों में होली की धूम मच जाती थी। मंदिरों में फाग की गूंज होती थी, गली-मोहल्लों में चंग की थाप पर फाल्गुनी गीतों की धुन छेड़ दी जाती थी, लेकिन अब ये सब बीते दिनों की बातें होती जा रही हैं।

जैसलमेरMar 06, 2025 / 08:39 pm

Deepak Vyas

jsm
फाल्गुन माह का आरंभ होते ही पहले गांवों में होली की धूम मच जाती थी। मंदिरों में फाग की गूंज होती थी, गली-मोहल्लों में चंग की थाप पर फाल्गुनी गीतों की धुन छेड़ दी जाती थी, लेकिन अब ये सब बीते दिनों की बातें होती जा रही हैं। आधुनिकता की चकाचौंध और मोबाइल क्रांति के कारण परंपरागत होली उत्सव सिमटकर केवल दो दिनों तक ही सीमित रह गया है।

मंद पड़ रही है होली की उमंग

कभी फाल्गुन की शुरुआत से ही हर गांव और ढाणी में होली की तैयारी शुरू हो जाती थी। शाम होते ही चौराहों पर चंग की थाप के साथ पारंपरिक नृत्य और लोकगीतों की महफिलें सजती थीं, लेकिन अब न तो ढप-चंग की गूंज पहले जैसी रही और न ही होली के पारंपरिक गीतों का वही जोश बरकरार है। युवाओं की रुचि इन लोक परंपराओं से दूर होती जा रही है, जिससे लोकसंस्कृति के ये प्रतीक धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ रहे हैं। लोकगीतों और चंग की थाप पर झूमने वाले ग्रामीणों की टोलियां अब विरल होती जा रही हैं। खासकर वे पारंपरिक नृत्य और उत्सव, जो नवजात शिशु के घर होने पर च्ढूंढज् मांगने वाली टोलियों के साथ हुआ करते थे, अब अतीत का हिस्सा बनते जा रहे हैं।

लोकवाद्ययंत्रों की बिक्री पर भी असर

होली पर बजने वाले ढोल, तबला, ढफ और चंग जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों की मांग भी लगातार घट रही है। पिछले वर्षों की तुलना में इस बार इनकी बिक्री और भी कम हो गई है। वाद्ययंत्र विक्रेता परमेश्वर खत्री के अनुसार, पहले होली से एक महीने पहले ही ये वाद्ययंत्र स्टॉक कर लिए जाते थे, लेकिन अब ग्राहक ही नहीं आ रहे। लोग अब डिजिटल माध्यमों में ज्यादा व्यस्त हो गए हैं, जिससे लोकवाद्ययंत्रों की परंपरा कमजोर होती जा रही है।

मोबाइल क्रांति ने छीन लिया त्योहारों का रंग

गांव-गांव और ढाणी-ढाणी तक मोबाइल की बढ़ती पहुंच ने पारंपरिक त्योहारों के उत्साह को घरों की चारदीवारी तक सीमित कर दिया है। जहां पहले लोग होली के रंग में डूबकर सामूहिक आयोजन करते थे, वहीं अब मोबाइल स्क्रीन पर रील्स और वीडियो देखने में ही त्योहार निकल जाता है। इससे पारंपरिक लोकसंस्कृति धीरे-धीरे अपनी पहचान खोती जा रही है।

Hindi News / Jaisalmer / महंगाई ने छीना लोक उत्सवों का रंग: होली का रंग फीका, चंग की गूंज भी मंद

ट्रेंडिंग वीडियो