scriptहमारी विरासत…. पोकरण: पहचान से दूर पोकरण के कुंभकार | Patrika News
जैसलमेर

हमारी विरासत…. पोकरण: पहचान से दूर पोकरण के कुंभकार

देश-विदेश में लगने वाले विभिन्न मेलों, प्रदर्शनियों में अपनी स्टॉल लगाकर मिट्टी की टेराकोटा कला की पहचान बनाने वाले कुंभकारों को सरकारी मदद व प्रोत्साहन की आज भी दरकार है।

जैसलमेरMay 27, 2025 / 08:39 pm

Deepak Vyas

देश-विदेश में लगने वाले विभिन्न मेलों, प्रदर्शनियों में अपनी स्टॉल लगाकर मिट्टी की टेराकोटा कला की पहचान बनाने वाले कुंभकारों को सरकारी मदद व प्रोत्साहन की आज भी दरकार है। मिट्टी को विभिन्न आकारों में ढालने की कला में दक्ष पोकरण के कुंभकारों को देशी और विदेशी लोगों की तारीफ तो खूब मिली, लेकिन जिस उद्देश्य के साथ इन कलाकारों ने इस कला को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया था, वह आज पीछे छूटने लगा है। सरकारी सहायता व कला संरक्षण के नाकाफी प्रयासों के चलते अब इन कलाकारों का सदियों से चले आ रहे पारंपारिक व्यवसाय से मोह भंग होने लगा है। प्रोत्साहन एवं बेहतर व्यावसायिक नीति के अभाव में कुंभकारों का रुख दूसरे धंधों की ओर होने लगा है। जबकि इनके हाथों से बनाए गए टेरा कोटा की आकृतियों व खिलौनों की मांग राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी है।

पहचान मिली, आजीविका नहीं बढ़ी

सीमित संसाधनों के बावजूद कला जगत में स्थानीय कुंभकारों ने देश ही नहीं विश्व में भी अपनी पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की है, लेकिन पहचान व तारीफ से हौसला तो बढ़ा, लेकिन पेट की आग नहीं बुझ सकी। कस्बे में कुम्हार जाति के करीब 200 परिवार है, जो वर्षों से चली आ रही परंपरा के रूप में मिट्टी को बर्तनों के अलावा विभिन्न आकृतियों में ढाल रहे है। लाल मिट्टी में छिपे कलातत्व को अपनी कल्पानाओं के माध्यम से पोकरण पोट्स के रूप में विकसित कर नए आयाम स्थापित करने में कामयाबी हासिल की है। जिसमें दिल्ली का लाल किला, आगरा का ताजमहल, न्यूयॉर्क का एफिल टॉवर समेत विश्व की हर छोटी-बड़ी ऐतिहासिक इमारतों के अलावा प्रकृति व धार्मिक देवी-देवताओं को अपनी कला में ढाला है, लेकिन बावजूद इसके ये लोग इस व्यवसाय से इतनी आय अर्जित नहीं कर सकते कि एक घरौंदे की छत तैयार हो सके।

पारंपरिक कला को बढ़ा रहे आगे

कुम्हार जाति के लोगों का मिट्टी के बर्तन व खिलौने बनाना उनका पारंपरिक व्यवसाय है, लेकिन इन कलाकारों ने अपनी आय में बढ़ोतरी करने व इस पारंपरिक कला को जीवित रखने के लिए इन्हें झूंझना पड़ रहा है। हालांकि गत कई वर्षों से कलाकार इस कला को नया रूप देने में जुटे हुए है। इसी का नतीजा है कि पोकरण में निर्मित इन मिट्टी के खिलौनों व अन्य आकृतियों को देश-विदेश में पोकरण पोट्स के नाम से ख्याति मिली है। फिर भी, बढ़ते पर्यटन व समय की मांग के अनुसार इस कला में आधुनिकता का संगम जरूरी हो गया है, ताकि न केवल इस कला को पुनर्जीवित किया जा सके, बल्कि विदेशों में भी इसकी मांग बरकरार रखी जा सके।

केवल मेलों के सहारे

सरकारी सहायता के अभाव में कुम्भकारों के लिए एक मात्र सहारा विभिन्न प्रदेशों में लगने वाले धार्मिक मेलों का रह गया है। स्थानीय बाजार में इन मूर्तियों व खिलौनों की मांग न के बराबर है। ऐसे में इन्हें आजीविका के लिए अन्य प्रदेशों का रुख करना पड़ता है। सुकून यह है कि रामदेवरा गांव में बाबा रामदेव की समाधि स्थल पर लगने वाला अंतरप्रांतीय मेला इस कला के संरक्षण में नई जान फूंक रहा है। लाखों की तादाद में यहां आने वाले श्रद्धालुओं से इन कुंभकारों को अच्छी खासी आय हो जाती है, लेकिन अब रामदेवरा में भी मेले के दौरान दुकानों व जमीनों का किराया हजारों में पहुंच चुका है। ऐसे में आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया की स्थिति के चलते इनके लिए रामदेवरा में मेले के दौरान दुकान लगाना मुश्किल हो रहा है। इसके अलावा ये दिल्ली के प्रगति मैदान में चलने वाले ट्रेड फेयर, दिल्ली हाट, अहमदाबाद, मध्यप्रदेश समेत अन्य राज्यों में भी उत्पाद बेचने को जाते है।

एक्सपर्ट व्यू— नहीं मिल रही है सरकारी मदद

पोकरण की कुंभकार हस्तकला समिति के प्रभारी सत्यनारायण प्रजापत ने बताया कि कस्बे में 100 से अधिक परिवार वर्षभर इस कार्य में कड़ी मेहनत से लगे हुए रहते हैं, लेकिन इससे कुछ ज्यादा आमदनी नहीं हो रही है। सरकारी स्तर भी किए जा रहे प्रयास नाम मात्र के ही साबित हो रहे है। ऐसे में कुंभकारों को आज भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से कला को बढ़ावा देने के लिए पहल अवश्य की गई है, लेकिन कोई विशेष लाभ नजर नहीं आ रहा है। रूडा की ओर से कुछ कलाकारों को नई तकनीक व डिजाइन के साथ खिलौने बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। यदि सरकार की ओर से मेलों में कम किराए पर दुकानें व ऋण अनुदान उपलब्ध करवाया जाता है तो यहां के कुंभकलाकारों को नया जीवनदान मिल सकता है।

कला के संरक्षण का कर रहे कार्य

बचपन से सीखा है कि मिट्टी में जान होती है। लाल मिट्टी को आकार देकर कला के संरक्षण का कार्य कर रहे है, लेकिन पर्याप्त आमदनी नहीं हो रही है।
  • किशनलाल, कुंभकार, पोकरण
पीढिय़ों से कर रहे कार्य
पीढिय़ों से मिट्टी के बर्तन, खिलौने, मूर्तियां आदि बनाने का कार्य कर रहे है। विदेशों में भी मांग है, लेकिन महत्व नहीं मिल रहा है। आजीविका नहीं चल पा रही है।
  • श्यामलाल, कुंभकार, पोकरण
    मिले स्थायी बाजार तो बच सकती है कला
टेराकोटा उद्योग को नया रूप देने का प्रयास किया है। आधुनिक डिजाइनों व प्रशिक्षण के माध्यम से कार्य किया, लेकिन स्थायी बाजार नहीं मिल रहा है। सरकार की ओर से स्थायी बाजार के साथ ऑनलाइन विपणन उपलब्ध करवाया जाता है तो कला को बचाया जा सकता है।
  • विजय कुमार, कुंभकार, पोकरण

Hindi News / Jaisalmer / हमारी विरासत…. पोकरण: पहचान से दूर पोकरण के कुंभकार

ट्रेंडिंग वीडियो