सवेरा होते ही आकाश में गरजे हंटर
जब सूरज की पहली किरण रेगिस्तान पर पड़ी, भारतीय वायुसेना के हंटर विमानों ने आसमान से आग बरसाई। दुश्मन के टैंक जलते रहे, सैनिक भागते रहे, और लोंगेवाला की धरती भारत की विजयगाथा गुनगुनाती रही। 1997 में आई फिल्म च्बॉर्डरज् ने इस युद्ध को परदे पर उतारा, लेकिन जैसलमेर के लोगों ने इसे ज़िंदगी में जिया है। विजय दिवस पर जब जयघोष गूंजता है, तो चांदपुरी की स्मृतियां फिर जीवित हो उठती हैं। वे 2018 में दुनिया से विदा हो गए, लेकिन लोंगेवाला के रेत-कण आज भी उनके साहस की कहानी सुनाते हैं।
इतिहास केवल किताबों में नहीं, धरती पर उकेरा
जैसलमेर मुख्यालय से 10 किमी दूर स्थित जैसलमेर युद्ध संग्रहालय’ हो या लोंगेवाला में बना स्मारक — दोनों ही भारत-पाक युद्ध की स्वर्णिम गाथा के जीते-जागते प्रमाण हैं। संग्रहालय में टैंकों, हथियारों, दस्तावेजों और चलचित्रों के ज़रिए उस ऐतिहासिक युद्ध को फिर से महसूस किया जा सकता है।